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नोबेल सम्मान : नोबेल पेनरोज की प्रकृति के रहस्य

गौतम चटर्जी : वाराणसी : एक दशक पहले से प्रत्याशित यह नोबेल सम्मान रोजर पेनरोज को इस वर्ष देने की घोषणा हुई है. उन्हें यह सम्मान भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में मिला है. वे तकनीकी रूप से गणितीय भौतिक विज्ञान यानी मैथेमेटिकल फिजिक्स के प्रोफेसर रहे हैं और

नोबेल पेनरोज की प्रकृति के रहस्य
नोबेल पेनरोज की प्रकृति के रहस्य

गौतम चटर्जी : वाराणसी : एक दशक पहले से प्रत्याशित यह नोबेल सम्मान रोजर पेनरोज को इस वर्ष देने की घोषणा हुई है. उन्हें यह सम्मान भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में मिला है. वे तकनीकी रूप से गणितीय भौतिक विज्ञान यानी मैथेमेटिकल फिजिक्स के प्रोफेसर रहे हैं और उन्हें पिछले दो दशकों से हाकिंग-पेनरोज सिंगुलरिटी थियोरम के लिए जाना जाता है जिसके अनुसार वे ब्लैकहोल अर्थात अन्धगह्वर की प्रतिष्ठा आइन्स्टाइन के ‘सापेक्षकता के सामान्य सिद्धान्त’ के आधार पर करते हैं. 2011 में उनसे एक मुलाकात कोलकाता में उनके एक सुविन्यस्त व्याख्यान के बाद हुई थी. करीब दो घंटे की इस बातचीत में जो बातें मुझे स्पष्ट हुई थीं उन्हें अद्यतन सामाजिक सन्दर्भ में आपके साथ साझा करने का यह अवसर बना है। स्टीफेन हाकिंग, पाल डेविस और रिचर्ड फेनमैन के समकालीन हैं पेनरोज. मुख्य रूप से वे गणितज्ञ हैं, आकाश विज्ञान यानी कास्मोलाजी के विशेषज्ञ हैं और दार्शनिक हैं. उनकी दो मुख्य किताबें ‘शैडोज आफ दी माइन्ड’और ‘दी लार्ज, दी स्माल ऐण्ड दी ह्यूमन माइन्ड’, जो क्रमशः 1994 और 1999 में प्रकाशित हुई थीं, आपको बोधगम्य लगने लगेंगी यदि आप उनके इन तीन समकालीन विज्ञानियों की किताबें पहले पढ़ लें तो. और यदि नहीं पढ़ें हैं तो पहली किताब सिर्फ गणित के समीकरणों के रिसर्च पेपर्स लगेगी. दूसरी किताब में हाकिंग, डेविस आदि के आकाश विज्ञान सम्बन्धी विचार हैं और इसके अन्तिम अध्याय में उन विचारों पर पेनरोज का अपना वक्तव्य है. उनकी दो अन्य किताबें ‘एम्परर्स न्यू माइन्ड’ और ‘साइकिल्स आफ टाइम’ का उल्लेख यहां इसलिए जरूरी है कि समय और प्रकृति के गूढ़ रहस्यों को समझने की उनकी दृष्टि को हम मनुष्य चेतना के सन्दर्भ में समझ पाते हैं. यही संवाद का प्रस्थान भी बना था. संवाद के तीन हृदयसन्दर्भ थे. एक था प्रकृति का अबूझ रहस्य, दूसरा था मनुष्य चेतना का सामाजिक उत्तरण, और तीसरा था दोनों के बीच छिपे सम्बन्ध को आकाश विज्ञान की नजर से देखना और उसे गणित के समीकरण में रखना ताकि यह अमूर्त न रहकर मूर्त शुद्धता में व्यक्त हो सके. इस प्रस्थानत्रयी के प्रथम दोनों सन्दर्भ नये नहीं हैं हमारे लिए. इससे पहले रबीन्द्रनाथ ठाकुर और आइन्स्टाइन के बीच कई चरणों में इस पर सार्थक संवाद हो चुके हैं. भारतीय विज्ञान की ऋषि मनीषा यह अनुभव करती थी कि प्रकृति के दो ही काम हैं. एक है सत्य पर आवरण डाल देना और दूसरा, दूसरी चीजों की ओर ध्यान भटकाना जो हमारी ज्ञानेन्द्रियों को उद्दीप्त करती हैं. इसे माया कहा गया. यह इतना गूढ़ नहीं है कि इसे सामान्य सामाजिक उदाहरणों से न समझा जा सके. संसार में जो कुछ भी यथार्थ है वह सामाजिक सत्य है. सत्य की सामाजिक छटा को हम यथार्थ कहते हैं. यथार्थ यानी रियलिटी वह है जो भौतिक स्तर पर किसी देशकाल में विकसित हुआ हो. जैसे इन दिनों देश भर के सभी चिकित्सालयों को कोविड सेन्टर के तौर पर बरता जा रहा है जहां उन मरीजों को प्राथमिक तौर पर तफसील से देखा जा रहा है जिनमें कोरोना के लक्षण सामान्य या अधिक हैं. यह यथार्थ है. ऐसे में सामान्य तौर पर अन्य बीमारियों से जूझ रहे युवा और बुजुर्ग मरीजों की चिकित्सा इन जगहों पर या तो बिल्कुल नहीं हो रहीं या न्यूनतम हो रही, या सामान्य तौर पर हो रही. यह दूसरा यथार्थ है. इलाज न होने का कारण कुछ भी हो सकता है लेकिन इस तरफ ध्यान किसी का नहीं है, सिवाय तकलीफ सह रहे लोगों के. ऐसे लोगों में डायलिसिस पर जी रहे किडनी के रोगी, हृदयरोगी, मधुमेह या रक्तचाप या मनोवैज्ञानिक रोग जैसे सीजोफ्रेनिया आदि के रोगी बहुसंख्य हैं. 130 करोड़ की आबादी में स्वास्थ्य का यह मुख्य और नित्य सन्दर्भ आम जनचेतना से छिप गया है. विज्ञानी कहते हैं कि प्रकृति एक रहस्य उद्घाटित करती है तो उसी समय दूसरा यथार्थ छुपा लेती है. कुछ छुपेगा तभी कुछ दिखेगा. या, ‘कुछ प्रकट है’ का एकमात्र अर्थ है ‘कुछ छुप गया है’ जो महत्वपूर्ण है. यथार्थ पर पड़ते पर्दे का उदाहरण देकर या इसे रूपक के तौर पर दृष्टान्त बनाकर हम सत्य पर पड़े माया या प्रकृति के आवरण को भारतीय ढ़ंग से समझते हैं. पश्चिमी ढ़ंग सत्य को यथार्थ कह कर या सत्य का प्रसंग छोड़ अबूझ प्रकृति संकेतों को प्रकट साक्ष्य से प्रस्तावित और सत्यापित करता है. इसके लिए यह ढंग उन पूर्वस्थापित तत्वों को मूल आधार मानकर चलता है जो भौतिकशास्त्र और गणित के नियम, तर्क और प्रमेय हैं. भारतीय दृष्टि इस तर्कशीलता को बुद्धि कहती है और पश्चिमी प्रविधि इसे अन्तिम युक्ति मानती है. ऐसी तर्कयुक्ति से प्रकाश और सापेक्षता के स्थापित अन्तर्सम्बन्ध को पेनरोज सिंगुलरिटी कहते हैं. ब्लैकहोल और डार्क मैटर इसी सिंगुलरिटी या एकाक्ष के आकाश में प्रक्षिप्त गह्वर हैं. देशकाल का ऐसा क्षेत्र जहां अत्यधिक गुरुत्व के कारण प्रकाश तो क्या, किसी भी स्तर का इलक्ट्रोमैग्नेटिक रेडियेशन सम्भव नहीं. इसी, ऐसे घनेरे क्षेत्र के घनत्व पदार्थ का नाम है डार्क मैटर. भारतीय मनीषा के कई प्रज्ञासूत्र इसी अन्धेरे के पीछे स्थित प्रकाश को स्पष्ट देखते हैं और इस दर्शन का उच्चार सन्ध्या भाषा में करते हैं. जैसे मौन शब्द में व्यक्त नहीं हो सकता उसी तरह यह प्रकाश चेतना के अन्धेरे में अव्यक्त है. चेतना या कान्शसनेस को बौद्ध दर्शन में विज्ञान कहा गया है और इसके पांच स्कन्धों में इसे बहुत नीचे स्थान दिया गया है यानी रूप, वेदना, संज्ञा और संस्कार के बाद रखा गया है जो पेनरोज के लिए सर्वोच्च महत्व का है. उनके लिए ही नहीं बल्कि आज विचार के अद्यतन विश्व में चेतना या कान्शसनेस को प्रथम महत्व दिया गया है और पिछले कुछ दशकों से फेनोमेनोलाजी या काग्निटिव साइन्स में महत्वपूर्ण ढ़ंग से इसके अध्ययन की परम्परा बनती गयी है. पेनरोज कहते हैं कि हम आकाश विज्ञान की गणित भाषा में प्रकृति के शाश्वत रहस्य को समझ सकते हैं और इसके बारे में एक बोधगम्य और सुसंगत दृष्टि बना सकते हैं. यह मनुष्य चेतना को समझने में भी उसी तरह सहायक है जैसे प्रकृति की आत्यन्तिक संरचना को, जो हमें भौतिक स्तर पर जटिल लगती है. 1996 में ‘दी कान्शस माइन्ड’ किताब लिख कर पेनरोज के बाद लोकप्रिय हुए आस्ट्रेलिया के दार्शनिक डेविड चाल्मर्स एक अन्य दृष्टि साझा करते हैं. वे कहते हैं, यदि हम प्रथम पुरुष की जगह अन्य पुरूष के तौर पर यानी थर्ड पर्सन होकर प्रकृति और इसके मन को देखें तो विराट चेतना का कुछ अंश हमारी पकड़ में आ सकता है. क्वान्टम भौतिकी इस दृष्टि को पहले अपना चुकी है. विराट और सूक्ष्म, उभयदृष्टि को सहअस्तित्व के तौर पर अपनाकर भी अभी तक कोई अर्थपूर्ण सफलता उन्हें नहीं मिल सकी है. इसके बावजूद पेनरोज अपने तात्विक वातायन में क्वान्टम फिजिक्स को साथ संजोते हैं. वे कहते हैं कि यदि कम से कम छुपे और अधिक से अधिक प्रकट हो तो इसमें हर्ज क्या है ! अव्यक्त को गणितीय कल्पना में उकेरना पेनरोज का रहस्यमन है जो बौधायन, मानव, आपस्तम्ब और कात्यायन की उस भाषा से बिल्कुल अलग है जो शुल्ब सूत्रों की व्याख्या अन्य गणितीय समीकरणों में करती है. पेनरोज को उनके दो अन्य साथी विज्ञानियों के साथ नोबेल पुरस्कार मिलने की सूचना से आधुनिक भारतीय मनीषा भी उत्साहित और प्रसन्न है. प्रकृति के गहरे अन्धेरे रहस्य का उद्घाटन भी यदि उनकी गणितीय मीमांसा पद्धति में हो सका तो हम इसे आलोकवर्षी समय मानकर और प्रसन्न हो जायेंगे.


Published: 26-12-2020

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