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नेपाली राजनीति में फिर धमाल : ओली ने संसद भंग कर नये चुनावों की घोषणा कर दी

नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने अपने पूर्व प्रधानमंत्रियों की परंपरा को फिर आगे बढ़ा दिया है. नेपाल में कई वर्षो में किसी प्रधानमंत्री का कार्यकाल पूरा नहीं हुआ. ओली के दो साल बाकी थे लेकिन उन्होंने संसद भंग कर नये चुनावों की घोषणा कर दी

ओली ने संसद भंग कर नये चुनावों की घोषणा कर दी
ओली ने संसद भंग कर नये चुनावों की घोषणा कर दी

नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने अपने पूर्व प्रधानमंत्रियों की परंपरा को फिर आगे बढ़ा दिया है. नेपाल में कई वर्षो में किसी प्रधानमंत्री का कार्यकाल पूरा नहीं हुआ. ओली के दो साल बाकी थे लेकिन उन्होंने संसद भंग कर नये चुनावों की घोषणा कर दी. नेपाली संविधान में संसद भंग करने की तभी सुविधा दी गयी है जब कोई सरकार अल्पमत में चली जाए लेकिन ओली ने यह नौबत नहीं आने दी. उनकी कम्युनिस्ट पार्टी के १९ सदस्यों नें उनकी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव रखा तो उन्होंने संसद ही भंग करवा दी. संसद के २७५ सदस्य परेशान हैं. नेपाल की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी वास्तव में दो कम्युनिस्ट पार्टियों से मिलकर बनी है. एक है मार्क्सवादी लेनिनवादी और दूसरी माओवादी है. एक के अध्यक्ष ओली और दूसरी के पुष्पकमल दहल प्रचण्ड हैं. ये दोनों पार्टिया २०१७ में एक हो गयीं लेकिन पहले उनमें कड़ी प्रतिस्पर्धा थी. ओली चाहते थे कि प्रचण्ड के खिलाफ लडाइयों के अपराधिक मुकदमे चलें लेकिन २००८ में पहले कम्युनिस्ट शासन में प्रचण्ड ही प्रधानमंत्री बने. २०१७ के चुनाव में पार्टी को प्रचण्ड बहुमत मिला और ओली प्रधानमंत्री बन गये. ओली और प्रचण्ड दोनों ही संयुक्त कम्युनिस्ट पार्टी के सह अध्यक्ष हैं. पार्टी पर प्रचण्ड का वर्चस्व है और सरकार पर ओली का. प्रारम्भ में आशा थी कि दोनों नेता और पार्टियाँ एक होकर शासन चलाएंगी लेकिन शुरू से ही इतना तनाव था की सत्तारूढ़ होते ही दोनों खेमों नें एक दुसरे के उपर आरोप लगाने शुरू कर दिये. बतौर विरोधी दल नेपाली कांग्रेस व मधेसी पार्टियाँ ओली का जितना विरोध करतीं उससे जादा प्रचण्ड खेमा करने लगा. सबसे पहले तो यह मांग उठी की ओली यदि प्रधानमंत्री बने रहना चाहते हैं तो पार्टी का अध्यक्ष पद छोड़ें फिर उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने लगे. अमेरिकी मदद से बनने वाली पचास करोड़ रुपया की सड़क पर सत्तारूढ़ दल के नेताओं नें ही सवाल उठा दिए. ओली पर भारतपरस्ती का आरोप लगा. यह खुलेआम पार्टी मंचों से कहा गया की नेपाल के लिपुलेख कालापानी क्षेत्र में भारत सड़क बना रहा है और ओली ने मुह पर पट्टी बाँध रखी है. इस बीच चीन की महिला राजदूत हाउयांकी नें जबरदस्त सक्रियता दिखाई दोनों खेमें के झगड़े में वह सरपंच की भूमिका में रहीं चीन के नेता भी काठमांडू के चक्कर लगाने लगे. ओली भी कई पैतरे दिखने लगे उन्होंने कह दिया की वह पांच साल राज्य करेंगे. उन्होंने प्रचंड के नहले पर दहला मार दिया और लिपुलेख कालापानी के मामले में भारत के विरुद्ध अभियान छेड दिया. इधर भारत सरकार का कड़ा रुख देख ओली नें भारत पर डोरे डालने शुरू कर दिए. कुछ दिन पहले भारत के सचिव से काठमांडू में काफी चिकनी चुपड़ी बातें की लेकिन भारत का रवैया तटस्थ है. नेपाल और भारत के सम्बन्ध नाभिनाल की तरह हैं. दुनिया के किन्ही भी दो देशों के सम्बन्ध इतने गहरे नहीं हैं. नेपाल के लगभग ८० लाख लोग भारत में रहते हैं. भारत की फ़ौज में सात गोरखा रेजिमेंट और साठ हजार नेपाली सैनिक हैं. नेपाल की सरकार अब उसे हिन्दू राष्ट्र न कहे लेकिन नेपाल क्या है यह सभी को पता है. चीन जो करले भारत नेपाल सम्बन्ध अटल है.


Published: 24-12-2020

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