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भारत-नेपाल के बीच 'करनाली जल बिजली परियोजना' ठंडे बस्ते में

अनूप श्रीवास्तव : लखनऊ : भारत और नेपाल के बीच प्रस्तावित अंतर्राष्ट्रीय "करनाली जल विद्युत परियोजना" को अगर नौकरशाहों और विद्युत अभियंताओ के गठजोड़ ने ठंडे बस्ते में न डाल दिया होता तो आज गोरखपुर प्रदेश की औद्योगिक राजधानी बन गयी होती और पूर्वी उत्तरप

भारत-नेपाल के बीच 'करनाली जल बिजली परियोजना' ठंडे बस्ते में
भारत-नेपाल के बीच 'करनाली जल बिजली परियोजना' ठंडे बस्ते में
अनूप श्रीवास्तव : लखनऊ : भारत और नेपाल के बीच प्रस्तावित अंतर्राष्ट्रीय "करनाली जल विद्युत परियोजना" को अगर नौकरशाहों और विद्युत अभियंताओ के गठजोड़ ने ठंडे बस्ते में न डाल दिया होता तो आज गोरखपुर प्रदेश की औद्योगिक राजधानी बन गयी होती और पूर्वी उत्तरप्रदेश जगमगा रहा होता. इस अंतर्राष्ट्रीय जल विद्युत परियोजना को गोरखपुर में अमली जामा पहनाया जाना था और इसकी वित्तीय मदद विश्व बैंक द्वारा की जानी थी. इसकी घोषणा उत्तर प्रदेश के तत्कालीन विद्युत मंत्री ब्रह्मदत्त ने संवाददाता सम्मेलन में कर दी थी. इस जल विद्युत परियोजना को वित्तीय सहायता देने के लिए विश्व बैंक ने अपनी सहमति भी दे दी थी लेकिन हुआ यह कि उस समय बिजली बोर्ड में तापीय विद्युत के विशेषज्ञों को बिजली मंत्री की घोषणा से सांप सूंघ गया. और अंदर ही अंदर उस जल विद्युत परियोजना को ठंडे बस्ते में डालने के लिए उसी समय कमर कस ली थी. ऊपर से बिजली मंन्त्री की हाँ हाँ करने वाले विद्युत अभियंताओं ने मुंह बनाना शुरू कर दिया था और किया भी उन्होंने यही. इस के कुछ महीने बाद ही चुनाव के माहौल ने "करनाली विद्युत परियोजना" को किनारे कर दिया. बिजली मंन्त्री ब्रह्मदत्त केंद्र में पेट्रोलियम मंन्त्री होकर चले गए और प्रथमिकताएँ बदल गईं. तत्कालीन बिजली मंन्त्री ब्रह्मदत्त का मानना था कि विश्व बैंक की मदद से भारत और नेपाल के बीच वह जल विद्युत परियोजना साकार हो जाने के बाद भारत और नेपाल को घाघरा की बाढ़ से हमेशा के लिए मुक्ति मिल जाती साथ ही पूर्वांचल की आर्थिक संपन्नता का नया दरवाजा खुल जाता. उस समय बिजली बोर्ड के अध्यक्ष भोपाल सिंह न केवल तापीय बिजलीघरों के तगड़े हिमायती थे बल्कि नए जल विद्युत घरों बनाये जाने के सख्त खिलाफ थे. जब मैने एक बार पत्रकार सम्मेलन में बिजली मंन्त्री बदलने के बाद करनाली जल बिजली उत्पादन परियोजना के बारे में प्रश्न किया तो पत्रकार सम्मेलन खत्म होने के बाद वे अपनी कुर्सी से उठकर हम लोगों के पास आकर बैठ गए और सलाह देने लगे कि रात गयी बात गयी अब गड़े मुर्दे उखाड़ने से कुछ होने वाला नहीं है. तब से घाघरा में जाने कितना पानी बह गया. हर साल बाढ़ की विभीषिका आ सामने खड़ी हो जाती है. ताप बिजलीघर बूढ़े होकर बन्द होने की कगार पर हैं सिवाय रिहन्द समेत चंद जल विद्युत घरों के. और अब तो विश्व बैंक से वित्त पोषित होने वाली करनाली जल विद्युत परियोजना का अता पता भी नहीं है. उस समय से ही यह चिंता का विषय था कि देश मे ताप बिजली घरों के लिए 20 वर्ष बाद से कोयले का टोटा पड़ जायेगा और यह संकट आ भी गया. प्रदेश में एक भी नया बिजलीघर निर्माणाधीन नही है. सिवाय सौर ऊर्जा के स्रोत के बिजली उत्पादन का अन्य कोई सहारा नहीं दिखाई दे रहा है लेकिन बरसात और शीत ऋतु में सूर्य ऊर्जा से कितना विद्युत उत्पादन हो सकेगा, इस सच्चाई से सभी वाकिफ हैं. विद्युत उत्पादन के स्रोत तापीय बिजली घर,जल विद्युत घर, वायु ऊर्जा, परमाणु ऊर्जा के अलावा समुद्री ऊर्जा सबसे बड़ा बिजली उत्पादन का जरिया है. वायु ऊर्जा से उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड में 20 हजार मेगावाट बिजली बनाई जा सकती है. अब वायु ऊर्जा के लगभग सभी स्थल उत्तराखंड में है. समुद्री ऊर्जा सबसे सस्ता और प्रभावी स्रोत है. समुद्र में हर 12 घण्टे बाद ज्वार और 12 घण्टे बाद भाटा आता है. जब ज्वार आता है समुद्री पानी धरती पर फैलने लगता है. समुद्री जल ऊर्जा यानी जल बिजली घर बनाये जाने के बाद बिजली आसानी से बनाई जा सकती है. आज जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समुद्री पानी को पीने योग्य बनाने के संयंत्र का उद्घाटन कर रहे थे बिजली उत्पादन में लगे विशेषज्ञ निश्चय ही समुद्री ऊर्जा के दोहन पर कदाचित ध्यान देना चाहे !

Published: 16-12-2020

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