सुशांत सिंह राजपूत की तथाकथित आत्महत्या और वो कुर्ता ?
सतीश मिश्र : लखनऊ : सुशांत की संदेहास्पद मृत्यु के एक सबसे महत्वपूर्ण तथ्य पर किसी का ध्यान ही अब तक नहीं गया है. मुम्बई पुलिस का तो नहीं ही जाना था लेकिन मीडिया में तथा उस पर लगातार आ रहे भांति भांति के विशेषज्ञों में से भी किसी का ध्यान इस तरफ नहीं गया है. सम्भवतः CBI ने इस पर ध्यान दिया हो क्योंकि यह अकेला तथ्य ही सुशांत सिंह राजपूत द्वारा आत्महत्या किए जाने की वेताल कथा की धज्जियां उड़ा देता है. आप सब लोग इस तथ्य से तो परिचित ही हैं कि पहले दिन से यह दिखाया बताया जा रहा है कि हरे रंग के जिस कपड़े का फंदा बनाकर सुशांत ने फांसी लगा ली वो हरा कपड़ा दरअसल उसका कुर्ता था. लेकिन क्या यह सम्भव है ? उपरोक्त सवाल का ज़वाब जानने समझने के लिए पहले कुर्ते से संबंधित इस एक बहुत जरूरी तथ्य से परिचित हो जाइए. यह कोई रहस्य नहीं है कि कुर्ता गर्मी का ही पहनावा है. अतः बहुत हल्के कपड़े का कुर्ता ही लोग पहनते हैं. विशेषकर मुम्बई सरीखे गर्मी और उमस वाले महानगर में तो मोटे कपड़े या गर्म कपड़े के कुर्ते का कोई प्रश्न ही नहीं है लेकिन यह केवल एक पक्ष है और प्रारम्भिक किन्तु अनिवार्य पक्ष है. इसका दूसरा पक्ष बहुत महत्वपूर्ण है जिससे सम्भवतः कम लोग परिचित होंगे क्योंकि जीवन का बड़ा हिस्सा लखनऊ में ही गुजरा है और लखनऊ में कुर्ता पहनने का जबर्दस्त चलन है इसलिए मैं इस दूसरे पक्ष से परिचित हूं. वह दूसरा पक्ष यह है कि आम आदमी तो सिलाई मशीन से सिले हुए कुर्ते ही पहनता है लेकिन समाज का जो धनाढ्य वर्ग है या जो अपने वस्त्रों के चयन को लेकर बहुत सजग रहते हैं, जिन्हें आप फैशनपरस्त कह सकते हैं. वो लोग सिलाई मशीन के बजाय हाथ से सिले गए कुर्ते ही पहनते हैं. इसका कारण यह होता है कि सिलाई मशीन से सिले गए कुर्ते में सिलाई के स्थान पर सिकुड़न बन जाती है, विशेषकर उस स्थान पर जहां कुर्ते की बांहें कुर्ते से जुड़ती हैं. इसके कारण कुर्ते का फॉल भी सही नहीं गिरता. लेकिन हाथ से सिले गए कुर्ते में यह सिकुड़न नहीं पड़ती क्योंकि सिलने वाला एक एक टांका बहुत सधे हुए हाथों से सिकुड़न मिटाते हुए लगाता है. इसीलिए हाथ के सिले कुर्ते की सिलाई में समय बहुत लगता है और वो बहुत महंगी तो होती ही है लेकिन कमजोर भी होती है इसलिए उसे बहुत सावधानी से पहना जाता है. हाथ से कुर्ता सिलने वाले भी बहुत कम होते हैं. इसीलिए कुछ बहुत मशहूर ब्रांडेड कम्पनियों के कुर्ते बहुत महंगे इसीलिए होते हैं क्योंकि वो हाथ के सिले हुए होते हैं. कुर्ते और उसकी सिलाई का उपरोक्त परिचय इसलिए जरूरी है क्योंकि सुशांत सिंह राजपूत के पास धन की तो कोई कमी थी नहीं. फैशनपरस्ती के सबसे बड़े अड्डे बॉलिवुड का चमकता हुआ सितारा भी वो था. अतः यह तय मानिये कि उसका कुर्ता भी हाथ का सिला हुआ ही होगा. अब आप स्वयं यह तय करिए कि क्या हाथ से की गयी बहुत नाजुक और कच्ची सिलाई कर के जोड़ी गयी कुर्ते की दोनों बाहों में से एक बांह को पंखे से बांधकर दूसरी बांह से गले को बांधकर 85 किग्रा का नौजवान लटक गया और दोनों बांहों की सिलाई जस की तस रही ? सत्य यह है कि कुर्ते की वो बांह 85 किग्रा का भार अधिकतम 10-15 सेकेंड ही सह पाएंगी और चरमरा कर उस जगह से चिथड़ा होकर अलग हो जाएंगी. यदि यह भी मान लीजिए कि बांहें सिलाई मशीन से ही सिली हुई थीं तो क्या वो सिलाई भी 85 किग्रा का भार सह सकती है. इसका उत्तर एक तथ्य से जान लीजिए कि हमारे आपके सबके जीवन में कभी ना कभी ऐसा अवश्य हुआ होगा कि थोड़ी टाइट शर्ट पहनने पर हाथ के हल्के से झटके से शर्ट की बांह की सिलाई उधड़ गयी होगी. बचपन से युवावस्था तक क्रिकेट खेलते समय बॉलिंग करने के दौरान मेरे साथ तो अक्सर ऐसा हो जाता था. अतः 85 किग्रा से अधिक भार वाले सुशांत सिंह राजपूत के शरीर का पूरा भार कुर्ते की बांह की सिलाई दो तीन घंटे तक सह गयी और टस से मस नहीं हुई. यह वेतालकथा मेरे गले के नीचे नहीं उतरती. यह वेताल कथा उस झूठ की भी धज्जियां उड़ा देती है कि सुशांत सिंह राजपूत ने कुर्ते से लटक कर आत्महत्या कर ली. (उल्लेख आवश्यक है कि क्योंकि सुशांत की लम्बाई ही 6.1 इंच थी. इसलिए उसके कुर्ते लम्बाई 3.5 या 4 फीट से अधिक हो ही नहीं सकती लेकिन 3.5 या 4 फीट लम्बे कुर्ते से लटक कर फांसी लगायी ही नहीं जा सकती है. इसके लिए कुर्ते की बांहों का ही उपयोग करना पड़ेगा.) इस कुर्ते की थ्योरी पर किसी ने आजतक ध्यान नहीं दिया. मीडिया के नामी गिरामी दिग्गजों ने भी नहीं. मैंने इसपर लिखने की सोची थी पर फिर मुझे लगा कि मामला ठीक दिशा में है इसलिए टाल गया था. लेकिन जिसतरह झूठ का तांडव अब पुनः प्रारम्भ हुआ है तो मुझे लगा कि इस तथ्य को भी सामने लाया जाना चाहिए.