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हताश पाकिस्तान अब किसका दरवाजा खटखटायेगा ?

डी के गर्ग : लखनऊ : खबर है कि इस्लामी जगत के सबसे धनी सेठ सऊदी अरब ने पैसा मांगने गये पाकिस्तानी आतंकवादी फैक्ट्री के सीईओ यानी जनरल बाजवा को बैरंग लौटा दिया है. सऊदी अरब पाकिस्तान का सबसे बडा़ फायनेन्सर है. आज जब पाकिस्तान एक गहरे आर्थिक संकट के बीच

हताश पाकिस्तान अब किसका दरवाजा खटखटायेगा ?
हताश पाकिस्तान अब किसका दरवाजा खटखटायेगा ?
डी के गर्ग : लखनऊ : खबर है कि इस्लामी जगत के सबसे धनी सेठ सऊदी अरब ने पैसा मांगने गये पाकिस्तानी आतंकवादी फैक्ट्री के सीईओ यानी जनरल बाजवा को बैरंग लौटा दिया है. सऊदी अरब पाकिस्तान का सबसे बडा़ फायनेन्सर है. आज जब पाकिस्तान एक गहरे आर्थिक संकट के बीच फंसा हुआ है उसकी एकमात्र आशा सऊदी अरब ही है. जहां से बिना मोल भाव यानी शर्त रहित कर्ज वह भी हजारों करोड़ रुपये का आसानी से मिल जाया करता रहा है. सऊदी अरब के इसी महत्व को देखते हुए पाकिस्तान वहां के लोगों के लिए प्रोटोकोल तोड़ मुहब्बत करता रहा. कभी पाकिस्तान भ्रमण में पहुंचे सऊद राजकुमार प्रिंस सलमान की अगवानी करते-करते पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान नियाजी ने उनके शोफ़र का काम कर पूरे विश्व को चौंकाया था. पर सऊदी-अरब और पाकिस्तान की यह बाण्डिंग बस पाखण्ड मात्र साबित हुई. जैसे ही इस बंधन या रिश्तेदारी को भारत-पाकिस्तान संबन्धों की आग में तपाने और आजमाने की पाकिस्तान ने कोशिश की. प्रिंस सलमान का ड्राइवर बनने से पैदा रिश्तेदारी हवा में उड़ गयी. दरअसल पिछले वर्ष 2019 अगस्त में भारत सरकार ने कश्मीर पर एक साहसिक कदम उठाकर कश्मीरी अलगाववाद की जड़ काटने हेतु एक ऐतिहासिक कदम उठाया. अलगाववाद को स्थान देने वाली संविधान की 370 और 35 ए जैसी टेम्पोरेरी व्यवस्थाओं का समापन कर वहां दो निशान दो विधान को समाप्त कर दिया. इस निर्णय का उद्देश्य अलगाववाद से पनप रहे आतंकवाद को नष्ट कर वहां भारत के अन्य राज्यों की तरह शांति और स्थिरता लाना तथा विकास सुनिश्चित करना है. भारत के इस निर्णय से एक तीर कई शिकार वाली बात हो गयी है. न केवल आतंकवाद की आधारभूमि कश्मीरी अलगाववाद जो शेख अब्दुल्ला के समय से चला आ रहा है वह खत्म हो गया है. कश्मीरियों को अब दुविधा मुक्त कर दिया गया है. उनके सामने स्पष्ट हो गया है कि उन्हें भारत में ही रहना है. अब कोई विकल्प नहीं बचा. दुसरे यह कि कश्मीर के उत्तरी और पश्चमी बडे़ भूभाग पर 1947 से कब्जा जमाए बैठे पाकिस्तान सहित पूरे विश्व को सन्देश गया है कि पीओके भी भारत का अंग है जिसे ले लेना भारत का कानूनी अधिकार है. वहां के लोग भारत के नागरिक हैं पर पाकिस्तान के बंधक हैं. अगर पाकिस्तान वहां किसी भी तरह के मानवाधिकार का उल्लंघन करता है तो भारत को कार्रवाई का अधिकार मिल जायेगा. तीसरा निशाना चीन का विस्तारवाद है जो सीपेक यानी चाइना-पाकिस्तान इकोनामिक कारीडोर के नाम से चल रहा है. उस पर भारी अवरोध पैदा कर देना है. वह इलाका जहां से सीपेक गुजरना है भारत का कानूनी अधिकार वाला क्षेत्र है यह रेखांकित हुआ है. चीन और पाकिस्तान की पूरी रणनीति की हवा भारत के 370 और 35 ए विनाश से निकल गयी है. ऐसे में पाकिस्तान और चीन के सामने भारत को डराने व दबाव में लेने की ही एक रणनीति बची थी जो पाकिस्तान द्वारा सीमाओं पर बारूद की गरमी बनाए रखने, कश्मीर में पाकिस्तानी तालिबान को प्रविष्ट कराने और चीन द्वारा लद्दाख में भारत को उलझाकर पाकिस्तान के पक्ष में भारत की सैन्य शक्ति को जमीन से लेकर वायु और समुद्र तक आधा-आधा बांट देने की रही. भारत के रणनीतिकारों को चीन के बिछाये शतरंज के हर चाल का अनुमान सा था. तभी भारत ने जापान, दक्षिण कोरिया और आष्ट्रेलिया व अमेरिका के सहयोग से दो फ्रन्ट पर एकसाथ युद्ध की रणनीति तैयारकर सीडीएस विपिन रावत के मुंह से गत वर्ष से ही कहलवाना शुरु कर दिया था पर चीन उस संदेश को ठीक से ग्रहण नहीं सका और गलवान में दुस्साहस दिखा अब अपने हाथ इस बुरी तरह फंसा बैठा है कि उसे निकलने का रास्ता नहीं समझ में आ रहा है. सबसे बुरी स्थिति तो पाकिस्तान की हुई है. पाकिस्तान की कश्मीर अस्थिर करने की नीति धराशायी हुई ही, युद्धोन्माद में लगी उसकी अर्थव्यवस्था जर्जर हो गयी पर विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, अमेरिका, इस्लामिक बैंक के सभी खजानों के मुंह बन्द हो गये. चीन भी अमेरिकी घेरेबन्दी में फंसकर आर्थिक जर्जरता के खतरे से दो-चार हो रहा है. पाकिस्तान का नया मित्र शिया ईरान खुद चीन के कर्ज जाल में अपने हाथ उलझा चुका है. विश्व समुदाय से प्रतिकूल होकर कोई भी देश संपन्न नहीं रह सकता. चीन से अब पूंजीनिवेशक कोरोना के बहाने वापस निकल रहे हैं. खुद चीनी वैश्विक कंपनियां भी अब नयी भूमि की तलाश में हैं. ऐसे में चीन पाकिस्तान का खर्च कितना उठायेगा यह एक बडा़ प्रश्न उपस्थित हुआ है. पाकिस्तान के रणनीतिकार और सैन्य विशेषज्ञ बदलती परिस्थितियों का समुचित आकलन नहीं कर पाये और उन्होंने अपने जनरल बाजवा को पैसा लाने सऊदी अरब भेज दिया. जबकि सऊदी अरब ने ईरान, पाकिस्तान, तुर्की और चीन की नयी उभरती धुरी के विनाशक प्रभावों का आकलन कर एक सही निर्णय लिया - बाजवा को जो एक एटमी आतंकवादी गिरोह का टाप कमाण्डर है वापस खाली हाथ लौटा दिया है. अब हताश पाकिस्तान क्या करेगा ? अब किसका दरवाजा खटखटायेगा ? खबर है कि इस्लामी जगत के सबसे धनी सेठ सऊदी अरब ने पैसा मांगने गये पाकिस्तानी आतंकवादी फैक्ट्री के सीईओ यानी जनरल बाजवा गये थे प्रिंस सलमान से मुलाकात के लिए, लेकिन प्रिंस सलमान ने मुलाकात करने के बजाय अपने छोटे भाई प्रिंस खालिद से बैठकी कराकर टरका दिया है.

Published: 20-08-2020

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