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नेपाल की राजनीति भंवर में

विकल्प शर्मा : नयी दिल्ली : नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली ने विरोधियों को धोबी पछाड़ दांव लगाया है. उन्होंने नेपाली संसद के दोनों सदनों को स्थगित करवा दिया है. दोनों सदनों के अध्यक्ष को पता चले उसके पहले ही नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी ने स

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नेपाल की राजनीति भंवर में
विकल्प शर्मा : नयी दिल्ली : नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली ने विरोधियों को धोबी पछाड़ दांव लगाया है. उन्होंने नेपाली संसद के दोनों सदनों को स्थगित करवा दिया है. दोनों सदनों के अध्यक्ष को पता चले उसके पहले ही नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी ने स्थगन के फैसले पर मुहर लगा दी. संसद का यह सत्र अचानक इसलिये स्थगित किया गया है कि यदि वो चलता रहता तो शायद ओली की सरकार गिर जाती क्योंकि उनकी सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के नेता नेपाली कांग्रेस और नेपाल की समाजवादी पार्टी से हाथ मिला लेते और ओली की सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित करवा लेते लेकिन यदि प्रतिद्वंद्वी कम्युनिस्ट नेता डाल डाल तो ओली पात पात निकले. संसद सत्र स्थगित करवा कर उन्होंने अविश्वास प्रस्ताव की आशंका को निर्मूल साबित कर दिया. अब वो अध्यादेश जारी करवाना चाहते हैं जिसके कारण उन्हें यह सुविधा मिल जायेगी कि वो पार्टी को आसानी से तोड़ सकें. अभी कानून ऐसा है कि अगर पार्टी तोड़नी है तो पार्टी की संसदीय समिति और स्थायी समिति दोनों के 40 प्रतिशत सदस्य साथ होने चाहिए. ओली अध्यादेश द्वारा कानून मे ऐसा संशोधन करना चाहते हैं कि दोनों समितियों में से किसी एक समिति के 40 प्रतिशत सदस्य ही काफी हों. ऐसा इसलिये कि पार्टी के स्थायी समिति के 43 सदस्यों में से 30 ओली के विरोधी हैं लेकिन संसदीय समिति में उनका स्पष्ट बहुमत है. नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के ज्यादातर सदस्य भी ओली के समर्थक हैं. यदि पार्टी टूटी भी तो अधिकतर ओली के साथ ही रहेंगे. अगर कुछ सदस्य प्रचंड या माधव नेपाल के साथ चले भी गये तो भी अधिकतर ओली के साथ रहेंगे और फिर ओली नेपाली कांग्रेस के 63 और समाजवादी पार्टी के 47 सदस्यों पर डोरे डालेंगे।.दूसरे शब्दों में पार्टी को तोड़ने पर ओली के विरोधियों को लाभ की संभावना कम ही है जो ये चाहते हैं कि ओली पर इतना दवाब डालें कि पार्टी के टूटे बिना वो घबराकर इस्तीफा दे दें. प्रचंड और माधव नेपाल ने ओली पर दो तरह से प्रहार किया. पहले तो उन्हें अमेरिका की जी हुजूरी करने वाला प्रधानमंत्री सिद्ध करने की कोशिश की गयी और फिर भारत की खुशामद करने वाले नेता के रूप में चित्रित किया गया. लिपुलेख और कालापानी के क्षेत्र के बारे में जो ओली पहले काफी संयत भाषा का प्रयोग कर रहे थे और भारत से राजनयिक स्तर पर सारे मामले सुलझाने की बात कर रहे थे, उन्होंने मौके की नजाकत समझते हुए भारत पर ऐसे प्रहार करने शुरू किये जो किसी अन्य नेपाली प्रधानमंत्री ने नहीं किये. उन्होंने कहा कि भारत का नारा सत्यमेव जयते की जगह सिंहमेव जयते है. यानी भारत ताकत के दम पर जमीन हथियाना चाहता है. उन्होंने पिछले दिनों भारत सरकार पर यह आरोप भी जड़ दिया कि वो उनकी सरकार को गिराने का षडयंत्र रच रही है. अपने विरोधियों का मुंह बंद करने के लिये उन्होंने नये ब्रह्मास्त्र का आविष्कार किया था-नेपाली संविधान में संशोधन. यह संशोधन उस नये नक्शे को पास कराने के लिये किया गया था जिसमें 1816 की सुगौली संधि के द्वारा भारत को दिये गये क्षेत्रों लिपुलेख, कालापानी आदि को नेपाल की सीमा में दिखा दिया. यह संशोधन नेपाली संसद में सर्वानुमति से पारित हो गया लेकिन ओली के सामने तुरंत ही दो मुद्दे खड़े कर दिये गये. एक तो प्रचंड और नेपाल ने और दूसरा नेपाली कांग्रेस ने. जो प्रचंड भारत विरोध का झंडा उठाये थे उन्होंने मांग की कि ओली सिद्ध करें कि भारत उनके विरुद्ध साजिश कर रहा है. उधर नेपाली कांग्रेस संसद में एक प्रस्ताव ले आयी कि चीन ने नेपाल के कुछ गांवों को अपनी सीमा में कैसे मिला लिया. भारत को उन्होंने चोट पहुंचाने की कोशिश की है लेकिन यह तो सुनिश्चित है कि चीन पूरी तरह ओली का साथ दे रहा है. ओली रहें या जायें नेपाल की राजनीति इस समय डांवाडोल है. पर ओली ने फिलहाल विरोधियों को तगड़ी डोज दे दी है.

Published: 07-05-2020

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