चीन अब गिलगित-बाल्टिस्तान पर भारत की आक्रामक रणनीति से खिसियाने लगा है
रजनीकांत वशिष्ठ : नयी दिल्ली : आखिर वही हुआ जिसकी आशंका थी. चतुर चीन अब गिलगित-बाल्टिस्तान पर भारत की आक्रामक रणनीति और कोरोना पर अपने आप को चारों ओर घिरा पा कर खिसियाने लगा है. दोकलम के बाद अब चीन ने लद्दाख और सिक्किम में भारतीय सैनिकों से उलझ कर अपनी बौखलाहट जाहिर कर ही दी. वैसे भारत और चीन की सीमा 3488 किलोमीटर लम्बी है और दोनों के सैनिकों के बीच झड़पें जब तब हुआ करतीं हैं. दोनों देशों के बीच सख्त प्रोटोकाल के तहत ऐेसे मामले सुलझा लिये जाते रहे है और तनाव के बावजूद दोनों ओर से गोलियां नहीं चलाई जातीं हैं. दरअसल सामरिक विशेषज्ञों का कहना है कि गिलगित और बाल्टिस्तान पर भारत के आक्रामक रुख का जवाब है चीन की यह कार्रवाई. चीन की यह बौखलाहट तब से शुरू हुई है जब से भारत ने गिलगित और बाल्टिस्तान को भारत का हिस्सा मानते हुए इन दो इलाकों के मौसम का हाल बताना शुरू किया है. चीन का ऐसा करके इशारा ये है कि भारत अगर गिलगित और बाल्टिस्तान में अपने कदम बढ़ायेगा तो वो सिक्किम में अपनी हरकतों को बढ़ा देगा. उसकी असली परेशानी ये है कि चीन इन्हीं इलाकों से होते हुए अपने महत्वाकांक्षी बेल्ट रोड इनीशियेटिव ’बीआर आई’प्रोजेक्ट को अंजाम देना चाहता है. भारत की पूर्व विदेश मंत्री स्वर्गीय सुषमा स्वराज ने संसद में चीन के इस प्रोजेक्ट का इसी आधार पर विरोध किया था कि यह भारत का हिस्सा है और चीन को यहां अपना प्रोजेक्ट डालने का कोई हक नहीं है और न ही पाकिस्तान का कोई अधिकार है कि वो इस इलाके को किसी को गिफ्ट करे. उधर चीन भी दुनिया के गेटवे या पुराने सिल्क रूट की अहमियत से भली भांति वाकिफ है. इस समय चीन की बौखलाहट का एक और पुख्ता कारण ये है कि घरेलू मोर्चे पर कोरोना कालखंडमें वो अपने घर और बाहर दोनों जगह बुरी तरह घिर गया है. बड़ी संख्या में मौतों के अलावा चीन में लोगों के रोजगार पर भी इसका प्रतिकूल असर पड़ा है. ऊर से कई देश चीन को कोरोना वाइरस बनाने और फ़ैलाने का अपराधी मानते हुए उस के खिलाफ गोलबंद हो सकते हैं. कई देशों ने आयात की जगह अपने ही देश में निर्माण और उत्पादन की नीति बनानी शुरू भी कर दी है. भारत में भी व्यापारियों और उपभोक्ताओं में चीनी माल के प्रति अब पहले जैसी दीवानगी नहीं रह गयी है. अमेरिका और जापान जैसे देश अपनी कम्पनियों को समेट कर भारत या दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में ले जाने की तैयारी में हैं. भारत ने अपने यहाँ चीनी निवेश की संभावनाओं को पहले ही रोक दिया है जिसके कारण चीन के निर्यात में 80 प्रतिशत तक कमी आने के आसार हैं. इस मोर्चे पर चीन के लोगों में अपने नेतृत्व से जबर्दस्त नाराजगी है. चीन जिस तरह से चौतरफा संकट से घिरा है उसमें वो राष्ट्रवाद को उभार कर भारत या अपने उन पड़ोसियों से भिड़ने का मंसूबा पालने लगा हो तो कोई बड़ी बात नहीं है जहाँ वो पांव पसार सकता है या जो उसके मनमाफिक चलने को राज़ी नहीं हैं. इसलिये पहले लद्दाख फिर सिक्किम में हुई ताजा झड़पों को रोजमर्रा की रुटीन झड़प नहीं माना जा सकता है. यह भारत के साथ तनाव बढ़ाने की चीन की सोची समझी रणनीति का हिस्सा माना जा सकता है. चीन का यह कदम पाकिस्तान को समर्थन देने का संदेश तो है ही, जो उसके लिए शूटर का काम कर सकता है. वैसे भी पाकिस्तान भी अपनी आतंक की फेक्टरी के कारण विश्व समुदाय में अलग थलग पड़ा हुआ है. इसके साथ ही उसकी निगाहें सिक्किम के आसपास पूर्वोत्तर भारत पर सामरिक बढ़त हासिल करने की है. 1973 में अपनी इसी मंशा के तहत चीन ने दोकलम में कब्जा करने की कोशिश की जिसे चिकन नेक कहा जाता है, पर नाकाम रहा. यदि ऐसा हो जाता तो चीन सिलिगुड़ी के बेहद पास पहुंच जाता. इसके बाद 2017 में सिक्किम के दोकलम में विवादित क्षेत्र में चीन द्वारा सड़क बनाने पर दोनों सेनाओं के बीच 72 दिन तनातनी चली थी. 16 जून 2017 को यह झड़प हुई जो दोनों सरकारों की कोशिशों के बाद 28 अगस्त 2017 को समाप्त हुई. अगस्त 2017 में भी दोनों देशों के सैनिकों में लद्दाख में पैंगांग झील के पास तकरार हुई थी. सामरिक रूप से ताज़े नाकु ला टकराव के तीन कारण बताये जा रहे हैं. एक यह कि यह पूरा इलाका बर्फ से ढका रहता है. गर्मियों में बर्फ पिघलने लगी है. ऐसे में दोनों देशों की सेनाओं द्वारा इलाके में पेट्रोलिंग शुरू की जाती है। तो दोनों देशों के सैनिकों का आमना सामना होता ही रहता है और यदा कदा थोड़ी हाथापाई भी हो जाती है.दूसरा कारण दोनों देशों के बीच सीमा के निशान नहीं हैं इसलिये अकसर सैनिक आमने सामने आ जाते हैं. तीसरा कारण चीनी सेना वहां सड़क बनाने की कोशिश कर रही है. चुंबी घाटी में वो सड़क बना चुके हैं, उसे अब और विस्तार देना चाहता है चीन. चीन की इंच इंच विस्तारवादी नीति का आलम तो ये है कि उसकी नजर पड़ोसी देश नेपाल पर भी है और उसकी दुनिया में सबसे उंची चोटी माउंट एवरेस्ट को वो माउंट क्वामोलैंग्मा के नाम से अपना हिस्सा बताने लगा है. चीन के सरकारी न्यूज चैनल चाइना ग्लोबल टेलिविजन नेटवर्क में माउंट एवरेस्ट पर सूर्य की रोशनी के नजारे को दिखाते हुए कहा गया है कि यह चीन के कब्जे वाले तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र का हिस्सा है. हालांकि चीन के इस कदम का नेपाल में भारी विरोध शुरू हो गया है. नेपाली विदेश मंत्रालय के अनुसार चीन और नेपाल ने 1960 में संधि पर हस्ताक्षर किये थे. इसके मुताबिक माउंट ऐवरेस्ट को दो हिस्सों में बांटा गया. इसका दक्षिणी हिस्सा नेपाल के पास रहेगा जबकि उत्तरी हिस्सा तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के पास होगा. चीन ने ऐवरेस्ट के तिब्बत की ओर 6500 मीटर की उंचाई पर जो 5 जी नेटवर्क बेस स्टेशन स्थापित किया है वो भी नेपाल ही नहीं भारत, बांगलादेश और म्यांमार की भी परेशानी का सबब बन गया है. चीन के इस नापाक कदम से पूरा हिमालय इस इंटरनेट बेस स्टेशन की निगाह में आ सकता है. इसका सामरिक पहलू भी है. कुल मिलाकर कोरोना के चलते विश्व में चीन की आर्थिक बादशाहत को जो जोर का झटका धीरे से लगा है उसी से बौखला कर चीन ने इधर उधर हाथ पांव मारने शुरू कर दिये हैं.