Media4Citizen Logo
खबर आज भी, कल भी - आपका अपना न्यूज़ पोर्टल
www.media4citizen.com

पाकिस्तान का नया सुल्तान इमरान खान

रजनीकांत वशिष्ठ : नयी दिल्ली : आक्सफोर्ड में पढ़ा एक ऐसा क्रिकेटर जिसका जलवा 22 गज की पिच पर अपने जमाने में सिर चढ़ कर बोलता हो, जिसने पाकिस्तान की क्रिकेट टीम को वर्ल्ड कप जिता कर पहली बार दुनिया में बुलंदी के आसमान पर बिठाया हो. तीन शादियां करने वाला

पाकिस्तान का नया सुल्तान इमरान खान
पाकिस्तान का नया सुल्तान इमरान खान
रजनीकांत वशिष्ठ : नयी दिल्ली : आक्सफोर्ड में पढ़ा एक ऐसा क्रिकेटर जिसका जलवा 22 गज की पिच पर अपने जमाने में सिर चढ़ कर बोलता हो, जिसने पाकिस्तान की क्रिकेट टीम को वर्ल्ड कप जिता कर पहली बार दुनिया में बुलंदी के आसमान पर बिठाया हो. तीन शादियां करने वाला वो प्ले ब्वाय इमरान खान आज पाकिस्तान का नया सुल्तान है. पाकिस्तान की सियासत में खालिस अपने दम पर दाखिल होने की इमरान की 22 साल की कड़ी मेहनत आखिर रंग ले ही आयी. जाहिर है अब पाकिस्तान का अवाम बड़ी हसरत के साथ इमरान की ओर देख रहा होगा कि जैसे कभी उसने पाकिस्तानी क्रिकेट टीम की कप्तानी करके देश का नाम रोशन किया था. वैसे ही अब वो एक सुल्तान की हैसियत से पाकिस्तान के माथे पर लगे आतंकवाद के कलंक को पोंछ कर नया पाकिस्तान बना देगा. इमरान ने अपनी चुनावी रैलियों में अवाम से यही वादा भी किया था कि अगर उसे मौका मिला तो वो नया पाकिस्तान बनायेगा. सियासत में वंशवाद और अतिवाद की बीमारी भारत में ही नहीं है बल्कि पाकिस्तान में भी है. इमरान जब अपनी मेहनत से खड़ी की गयी पार्टी पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ का निशान लेकर चुनावी अखाड़े में उतरे तो उनका मुकाबला दो बड़े सियासी खानदानों से था. एक ओर पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के बिलावल भुट्टो थे जो तीन पीढ़ियों से सियासत में हैं. उनके नाना जुल्फिकार भुट्टो, मां बेनजीर भुट्टो और पिता आसिफ अली जरदारी प्राइम मिनिस्टर और प्रेसीडेंट के पदों पर रह चुके थे. तो दूसरी ओर पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज के मुखिया नवाज शरीफ थे जिन्हें कल तक पंजाब का सबसे मजबूत शाह कहा जाता था और नवाज के भाई शाहबाज शरीफ, बेटी मरियम, भतीजा हमजा भी सियासत में मजबूती से पांव जमाये हुए थे. उस पर मुकाबले में भारत की नाक में दम करने वाले लश्करे तोयबा के आतंकवादी हाफिज सईद की पार्टी अल्ला हू अकबर भी मैदान में थी. निवर्तमान प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और उनकी बेटी मरियम तो खैर भ्रष्टाचार के आरोपों में सलाखों के पीछे होने के कारण चुनाव ही नहीं लड़ सके. पर पाकिस्तान के वोटर ने जिस तरह न केवल पी एम् एल नवाज़ के कार्यकारी अध्यक्ष और पंजाब प्रान्त के मुख्यमंत्री शाहबाज शरीफ और पी पी पी के सह अध्यक्ष बिलावल भुट्टो को जमीन सुंघा दी बल्कि हाफिज सईद के मंसूबों का सूपड़ा साफ कर दिया. उससे यह साफ है कि आम पाकिस्तानी को अब कोई एक ऐसा नया मसीहा चाहिये जो दुनिया में आतंक की पनाहगाह के रूप में बदनाम पाकिस्तान का मेकओवर कर सके. बेशक इमरान सियासत के मैदान का नया खिलाड़ी है पर दो दशकों में उसने वो हर दांव सीख लिया जो एक चतुर सियासतदां खेलता है. जरूरत पड़ी तो इमरान ने अपनी चुनावी रैलियों में भ्रष्टाचार पर लगाम और गरीबों का ख्याल रखने के लिये मोदी की तारीफ भी की. तो कही कश्मीर का सवाल उठा कर अपने उस खित्ते को भी साधने की कोशिश की जो इस्लाम के नाम पर कट्टरपंथ पर चलने की वकालत करता है. अपनी पार्टी की शानदार जीत के बाद इमरान ने जो शुरुआती इच्छा जतायी है उसमें भी उसने जिस तरह पाकिस्तान को डिप्रेशन के दौर से बाहर निकालने की बात कही है और पड़ोसियों से अमन का रिश्ता कायम करने का इरादा जाहिर किया है उसे प्रथमदृष्टया काबिले तारीफ कहा जा सकता है. कश्मीर के सवाल पर भी जो बात बीती 15 अगस्त को लालकिले से भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने कही थी कि कश्मीर समस्या गोली से नहीं गले लगाने से सुलझेगी. वही इमरान भी कह रहे हैं कि फौज शहरी इलाकों में जाये ये ठीक नहीं है. बातचीत की मेज पर कश्मीर का हल निकाला जाना चाहिये. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत में राजकाज संभालते ही कहा था कि सरकार गरीब के लिये होती है. ठीक उसी लाइन पर इमरान भी पकिस्तान में गरीबों के उत्थान की बात कह रहे हैं. सो बेशक इमरान का आगाज तो दुरुस्त है पर उनकी राह में दुश्वारियां भी कम नहीं हैं. नेशनल एसेंबली में इमरान की सरकार तो होगी पर मजबूत नहीं मजबूर सरकार होगी क्योंकि चुनाव में उसे पूर्ण बहुमत से कुछ कम हासिल हुआ है. अर्थात इमरान सरकार को सत्ता में बने रहने के लिये निर्दलीयों या तीसरे नंबर की पार्टी पीपीपी के रहमोकरम पर गुजर करना होगा. प्रांतीय एसेंबलियों में केवल अपने गढ़ खैबर पख्तूनख्वा में ही इमरान की पीटीआई का बहुमत है. बिलावल की हार के बावजूद सिंध प्रांत में जहां पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी का कब्जा बरकरार है तो सबसे बड़े और अहम सूबे पंजाब में शाहबाज शरीफ की व्यक्तिगत हार के बावजूद पीएमएल एन का दबदबा कायम रहा है. यानी इमरान को अगर पांच साल सही सलामत हुकूमत में कायम रहना है तो एक बाज़ीगर की तरह भुट्टो, शरीफ और निर्दलीयों को साध कर ही चलना होगा. इन सबके ऊपर आज दुनिया भर में ही नहीं पाकिस्तान के अंदर पीएमएल एन या पीपीपी की ओर से कहा जा रहा है कि इमरान जीते नहीं पकिस्तानी सेना द्वारा जिताये गये हैं. पाकिस्तान की हुकूमत पर सेना का दखल कितना है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सत्तर सालों के इतिहास में यह केवल दूसरा मौका है जब पाकिस्तान में सत्ता एक चुनी हुई सरकार से दूसरी चुनी हुई सरकार के हाथों में जा रही है। अस्सी के दशक में जुल्फिकार अली भुट्टो की सरकार को बेदखल करने के बाद जनरल जिया उल हक ने ही निवर्तमान प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को मैदान में न केवल उतारा बल्कि सत्ता में मजबूती से स्थापित कर दिया. अब वही काम आर्मी चीफ बाजवा ने इमरान को आगे बढ़ा कर किया है. कहा जाता है कि नवाज शरीफ चुनी हुई सरकार के मुखिया के नाते विदेश और प्रतिरक्षा के मामलों में सेना के दखल पर कैंची चलाने पर आमादा हो गये थे. कहने का मतलब ये कि पाकिस्तान में लोकतंत्र आधा अधूरा सा है. चुनी हुई सरकार अपनी मरजी से फैसले नहीं ले सकती. उसे पाकिस्तानी फौज के मश्वरे के बगैर एक कदम भी चलने का हक हासिल नहीं है. अब ऐसे में इमरान खान भारत समेत, चीन, ईरान, अफगानिस्तान जैसे पड़ोसियों से रिश्ते सुधारने की इच्छा के बावजूद फौजी एजेंडे से अलहदा रुख कैसे अख्तियार कर पायेंगे ये एक बड़ा सवाल उनके सामने होगा. एक प्रांत बलूचिस्तान बगावत की राह पर है और वहां के लोगों को पाकिस्तान की फौज ही कुचलने पर आमादा हो तो इमरान किस तरह अपने ही मुल्क को एक रख पायेंगे. आतंकवादियों की समस्या सर पर सवार है ही और कहा जाता है कि पाकिस्तानी फौज ही उन्हें पालती है तो ऐसे में इमरान की अमन की आशा का क्या होगा. पाकिस्तान पर अमेरिका, भारत सहित सारी दुनिया का दवाब पहले से है कि वो अपनी जमीन से आतंकवाद का सफाया करे. पाकिस्तान का खजाना खाली है. रुपये के मूल्य में 15 परसेंट की गिरावट है. चीन का कई अरब डालर का कर्जा सिर पर चढ़ गया है और इसके ऐवज में चीन पाकिस्तान को अंगूठे के नीचे दबाने भी लगा है. आतंक की सरपरस्ती के चलते अमेरिका, यूरोप के अमीर देश सहायता देना बंद कर चुके हैं. भ्रष्टाचार समरथ पाकिस्तानियों की नसों में प्रवेश कर चुका है. इन हालात में नया पाकिस्तान बनाने के लिये इमरान खान को कांटों का ताज पहन कर आग के शोलों पर चलना होगा. पर एक क्रिकेट कप्तान के तौर पर इमरान खान ने सही खिलाड़ियों को चुन कर असंभव को संभव कर दिखाया था. अब सियासत की पिच पर यही उम्मीद पाकिस्तान की जनता को इमरान खान से है. जनता ने तो भ्रष्टाचारियों और आतंकियों को कचरे के डिब्बे में डाल कर अपना काम तो कर दिया है.

Published: 27-07-2018

Media4Citizen Logo     www.media4citizen.com
खबर आज भी, कल भी - आपका अपना न्यूज़ पोर्टल