कई खिड़किया खुलेंगी मनीला से
सिटीजन ब्यूरो : मनीला : दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में के संगठन आसियान का मनीला में हुआ सम्मेलन सिर्फ अपनी पचासवीं वर्षगांठ की वजह से ही नही, बल्कि इसलिए भी अहम है, क्योंकि बदलते दौर में यह क्षेत्र वैश्विक राजनीति का भी एक बड़ा केन्द्र बन गया है. ऐसे में भारत के लिए भी यह एक बड़ा अवसर है, क्योकि 1990 के दशक की लुक ईस्ट नीति के बाद बदले हुए परिवेश में आज ऐक्ट ईस्ट नीति प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की महत्वाकांक्षी रणनीति का हिस्सा है, जिसके जरिये वह पूर्व के देशों को भारत में निवेश के लिए आमंत्रित करना चाहते हैं. ध्यान रहे, आसियान का यह सम्मेलन ऐसे समय हो रहा है, जब चीन अपनी ‘वन बेल्ट वन रोड’नीति का विस्तार से खुलासा कर चुका है और तेजी से उस पर अमल भी करता जा रहा है. आर्थिक और सामरिक दृष्टि से वह आसियान का सबसे ताकतवर देश भी है, ऐसे में स्वाभाविक रूप से वह इस मंच का अपने हितों के लिए इस्तेमाल भी करना चाहेगा. इस लिहाज से मनीला में भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के नेताओं की मौजूदगी के खास मायने निकलते हैं. इन चार देशों के औपचारिक संगठन को संक्षेप में ‘क्वाड’यानी चतुष्कोण कहा जा रहा है, जिसकी पहली औपचारिक बैठक एक दशक पहले 2007 में आसियान की बैठक में ही हुई थी. हालांकि बीते कुछ वर्षो में इसमें कोई खास हलचल नही हुई, लेकिन इस बार इसका महत्व बढ़ा है, तो साफ देखा जा सकता है कि इसकी सबसे बड़ी वजह चीन का बढ़ता दबदबा है. ‘क्वाड’देशों के अधिकारियों की बैठक में शांति, स्थायित्व और समृद्धि के लिए सहयोग बढ़ाने पर तो जोर दिया ही गया, इसमें मुक्त और स्वतंत्र नौवहन पर जो सहमति बनी है, उसमें चीन के लिए कड़ा संदेश छिपा है. भारत के लिए एक बड़ी सफलता यह भी है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने एशिया-प्रशांत क्षेत्र को अब भारत-प्रशांत क्षेत्र कहना शुरू कर दिया है. इससे पता चलता है कि ट्रम्प प्रशासन एशिया संबंधी अपनी रणनीति में भारतको केन्द्र में रखना चाहता है. सम्मेलन के दौरान मोदी और ट्रंप की द्विपक्षीय मुलाकात दोनों देशों के रिश्तों की मजबूती हो ही रेखांकित करती है. इस क्षेत्र में अमेरिका की जिस तरह से दिलचस्पी बढ़ रही है, उससे जाहिर है, आने वाले समय से इस क्षेत्र में गतिविधियां बढ़ेंगी, जिसमें भारत की भी बढ़ी भूमिका होगी.