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जनजातीय कला शिविर : तीन दिवसीय शिविर का समापन 

विगत 2 से 4 मई तक राजधानी लखनऊ के वास्तुकला एवं योजना संकाय में तीन दिवसीय लोक व जनजातीय कला शिविर का समापन गत शनिवार सायं लोककला के मंच प्रदर्शन के साथ हुआ ।

तीन दिवसीय शिविर का समापन 
तीन दिवसीय शिविर का समापन 
समापन समारोह और शिविर में कलाकारों द्वारा निर्मित कला की प्रदर्शनी की जानकारी देते हुए प्रलेखनकर्ता भूपेंद्र अस्थाना ने बताया कि शिविर में 4 प्रदेशों से आए 11 कलाकारों ने अपनी अपनी कला का अद्भुत प्रदर्शन किया,
 
खगेन गोस्वामी असम के माजूलीं मास्क के कलाकार ने मंच पर अपने गुरु श्रीमंत शंकरदेव गुरुजी द्वारा प्रारम्भ मास्क की प्रथा का विवरण देते हुए रामायण से बालि संवाद ,कृष्ण लीला से पूतना वध तथा रामायण से ही सुपर्णखा के मोहिनी रूप की मंच पर अनुपम प्रस्तुति दी। 
 
चित्रकार सरमुद्दीन ( मेदनापुर वेस्ट बंगाल) ने  मनसा पट और दुर्गा पट पर मनसा देवी और मां दुर्गा की कथा को गायन के माध्यम से मंच पर दर्शकों के समक्ष रखा। उन्होंने  30 फीट  की संपूर्ण रामायण चित्रित पेंटिंग को भी प्रदर्शित किया। को_ओर्डिनेटर धीरज यादव ने बताया कि लाख - डॉल के कलाकार वृन्दावन चंदा ने मिट्टी के खिलौनों को कोयले में गर्म करके  विभिन्न कलर की लाख के प्रयोग से सजाने का कार्य किया, रत्नप्रिया कान्त ने बताया कि दिनेश सोनी भीलवाड़ा - राजस्थान ने पिछवई कला द्वारा  पेंटिंग में वैश्वनव मंदिर वल्वभ  मंदिर बनाया ,  पिछवई में बड़े आकार के सूती वस्त्र पर प्राकृतिक रंग से पेंटिंग बनाई जाती है ।
 
पेंटिंग में कलाकार ने प्रयोग किए गए रंग मुख्यतः हींग, पिषावधी, हरा भाटा काजल ,कपूर , हड़मछ , नील  जंगल  जिंक और खरिया, सोने और चाँदी के वर्क और अकी स्याही का प्रयोग किया है,
 
असम के बिनॉय पॉल ने कहा कि ऐसी कलाएं  कई पीढ़ियों से चली आ रही है, आज के परिवर्तित परिवेश में आ रही कठिनाई के बावजूद ये कलाकार इन्हें संजोये और जीवित रखे हुए हैं। समाज में इन पारंपरिक कलाओं को बचाये रखने के लिए इन्हें प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
 
भूपेंद्र अस्थाना ने बताया कि शिविर में बनाई गई कला कृतियोँ की प्रदर्शनी का उद्घाटन 5 मई को माल एवेन्यू मार्ग स्थित सराका होटल के सराका आर्ट गैलरी में किया गया, 
 
प्रदर्शनी का उद्घाटन बतौर अतिथि पद्मश्री विद्या विंदु सिंह (वरिष्ठ साहित्यकार) और मंडावी सिंह (कुलपति भातखंडे विश्वविद्यालय) ने किया, उद्घाटन समारोह के सुअवसर पर डा0 विद्या बिंदु सिंह ने कहा कि इन कलाओं को जीवित रखने के लिए उनके प्रोत्साहन और संरक्षण की मूलभूत सुविधाएं दी जानी चाहिए, वहीं मंडावी सिंह ने कहा कि कला ही हमें विशेष बनाती हैं , कलाओं को बचाने का अर्थ अपने जीवन और संस्कृति को बचाना। कला और कलाकारों को आगे लाने का यह एक सराहनीय प्रयास है।  
 
क्यूरेटर डॉ वंदना सहगल ने बताया कि लोककला के हमारी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ी पारंपरिक कला या कला धीरे-धीरे खत्म हो रही है । यह शिविर लुप्तप्राय कला, शिल्प और उनके कलाकारों को सामने लाने का एक प्रयास है, कला प्रेमियों के लिए प्रदर्शनी 30 मई 2024 तक अवलोकनार्थ लगी रहेंगी।
 
- बबिता बसाक 

Published: 06-05-2024

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