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पिछड़ों की भूमिका : तय करेगी सल्तनत का सरताज

यूपी की सियासत में पिछड़े एवे अन्य पिछड़े वर्ग के मतदाता अब किंग मेकर बन चुके है। इनके भीतर भी जागरूकता आयी है। आज की सियासत इन अन्य पिछड़े वर्ग के मतदाताओं के आस-पास घुमड़ रही है। सल्तनत तय करने में इनकी भूमिका खास हो चली है।

तय करेगी  सल्तनत का सरताज
तय करेगी सल्तनत का सरताज

यूपी की सियासत में पिछड़े एवे अन्य पिछड़े वर्ग के मतदाता अब किंग मेकर बन चुके है। इनके भीतर भी जागरूकता आयी है। आज की सियासत इन अन्य पिछड़े वर्ग के मतदाताओं के आस-पास घुमड़ रही है। सल्तनत तय करने में इनकी भूमिका खास हो चली है। इस वर्ग के मतदाताओं को पिछड़े वर्ग के कथित स्चयंभू नेताओं द्वारा केवल यादव बिरादरी को अधिक तरजीह दी गयी। जिसकी वजह से अन्य पिछड़े वर्ग के मतदाताओं के बीच नाराजगी अंकुरित हुई थी।

इस नाराजगी का फायदा भाजपा ने उठाया। इस वर्ग को भाजपा अपने साथ जोड़ने में सफल रही है। नतीजन 2014 से लगातार यूपी में हुए चार चुनावों में भाजपा ने बाजी मारी। इसका पूरा श्रेय पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को जाता है। रही-सही कसर नरेन्द्र मोदी ने पूरी कर दी। ।

पिछडे वर्ग के लोगों की सामाजिक,षेैक्षिक एवं आर्थिक स्तर की परख करने के लिए केन्द्र ने मंडल आयोग का गठन किया था। मंडल आयोग ने 1980 में अपनी सिफारिषें सरकार को सौंप दी थी। आयोग की सिफारिषें करीब एक दषक ठंडे बस्ते में धूल फांकती रही। यूपी में 1994 में मंडल आयोग की सिफारिषों को मुलायम सिंह यादव की सरकार ने लागू किया। जबकि 1990 में प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने लाल किले की प्राचीर से मंडल आयोग की सिफरिषों को लागू करने का ऐलान किया था।

ऐलान के बाद भाजपा सहित अन्य सवर्णो ने इसका पुरजोर विरोध किया था। उस दौर में देष से मंडल और कमंडल की दो धाराऐं निकली थी। मंडल आयोग की सिफारिषों में पिछड़े वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण देने के साथ ही आरक्षण सूची में 76 जातियों को षामिल किया गया था। 1994 में मंडल कमीषन की रिपोर्ट लागू करने के बाद मुलायम सिंह यादव पिछड़ो के रहनुमा बनकर उभरे। वे पिछड़ी जातियों में यादव मोह की वजह से अन्य पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को अपने साथ एकजुट नहीं रख सके। 1960 के दषक में चैधरी चरण सिंह ओबीसी के प्रमुख नेता के रूप में स्थापित हुए थे।

1967 में ओबीसी मतदाताओं का कांग्रेस से मोहभंग हुआ। इसी साल चरण सिंह कांग्रेस से अलग हुए। पहली बार वे सीएम बने। वे यादवों और कुर्मियों के साथ ही जाटों के निर्विवाद नेता रहे। 1987 में उनका निधन हो गया। 1988 में वीपी सिंह कांग्रेस से अलग होकर जनमोर्चा बनाया। बाद में जनता दल का गठन किया। इस दौरान उन्हे कई राज्यों में पिछड़ी जातियों के कई नामचीन नेता मिले। यूपी में मुलायम सिंह यादव, बिहार में लालू प्रसाद यादव, मध्य प्रदेष में षरद यादव। तीनों नेता यादव बिरादरी से थे।

1989 में मुलायम सिंह यादव यूपी के पहली बार सीएम बने। इसी दौरान बिहार में भाजपा नेता एलके आडवाणी की रामरथ यात्रा को रोके जाने से भाजपा हिन्दुत्व के ज्वार के साथ उफान पर आयी।
सपा और बसपा को मात देने के लिए भाजपा ने यादव और मुस्लिम बिरादरी को छोड़कर अन्य पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को साधने की रणनीति गढ़़ी।

इस रणनीति के तहत भाजपा ने कल्याण सिंह को अन्य पिछड़ी जाति के नेता के तौर पर पेष किया। कल्याण सिंह ने गैर यादव और गैर जाटव बिरादरी को लामबंद करने का काम षुरू किया। 1991 में वे सूबे के सीएम बने। कल्याण के बाद राम प्रकाष गुप्त और राजनाथ सिंह की सीएम पद पर ताजपोषी हुई। राम प्रकाष गुप्त ने जाटो को पिछड़ी जाति में षामिल करने का बड़ा दांव खेला था।
राजनाथ सिंह ने सीएम रहते हुए आरक्षण में सेंधमारी करने की रएानीति के तहत जून 2001 को हुकुम सिंह के नतृत्व में सामाजिक न्याय समिति का गठन किया।

इस समिति की सिफारिषों में दलितों के लिए तय 21 फीसदी आरक्षण में 11 फीसदी आरक्षण गैर जाटवों को और यादव बिरादरी के लिए 5 फीसदी और अन्य पिछड़ी जातियों के लिए 22 फीसदी आरक्षण दिए जाने की अनुषंसा की थी। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था। 1977 में मुख्यमंत्री राम नरेष यादव ओवीसी के लिए सरकारी नौकरियों में 15 फीसदी आरक्षण देकर पिछड़ो के मसीहा बने। 2002 के बाद यूपी में पिछड़ो की सियासत में बड़ा बदलाव आया।

पूर्वांचल में कुर्मियो के बड़े नेता सोने लाल पटेल बसपा से अलग हुए। अपना दल का गठन किया। 2002 के विधान सभा चुनाव में उन्होने अपना दल के वैनर तले 351 प्रत्याषी में उतारे थे। जिनमें केवल तीन प्रत्याषी ही जीते। अक्टूवर 2002 में ही ओम प्रकाष राजभर भी बसपा से अलग होकर सुभासपा बनाया। 2016 में निषाद बिरादरी से संजय निषाद ने निर्बल इंडिया षोषित हमारा आम दल निषाद पार्टी का गठन किया।
सोने लाल की मृत्यु के बाद उनकी दो बेटियो क्रमषः अनुप्रिया पटेल और पल्लवी पटेल ने पार्टी की जिम्मेदारी सम्हाली।

बहनो के बीच अनबन होने के कारण पार्टी दो खेमों में बंट गयी। एक धडे की अगुवाई अनुप्रिया और दूसरे धड़े का नेतृत्व पल्लवी पटेल के हाथो में आ गया। 2014 के बाद पिछड़ा वर्ग को साधने में भाजपा कामयाब रही है। 2014 में सूबे की 80 लोकसभा सीटो में से भाजपा ने 73 सीटे जीती थी। 2017 के विधान सभा चुनाव में भाजपा ने पिछड़े वर्ग के नेता केषव प्रसाद मौर्य को पार्टी का अध्यक्ष बनाया।

इस चुनाव में भाजपा ने सूबे की 403 विधान सभा सीटो में से 312 सीटो पर जीत दर्ज की थी। भाजपा की सहयोगी दल अपना दल एस को 9 और सुभासपा को चार सीटो पर कामयाबी मिली थी। इस दौरान भाजपा में पिछड़े वर्ग के कई बड़े नेता षामिल हुए। जिसमें स्वामी प्रसाद मौर्य, बाबू सिंह कुषवाहा, दारा सिंह चैहान, आदि प्रमुख नाम थे। 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा के साथ आने के बावजूद भी भाजपा 80 में से 62 सीटे जीतने में सफल रही। 2022 के विधान सभा चुनाव के पहले स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चैहान भाजपा छोड़कर समाजवादी खेमे में आ गये।

पिछड़ी जातियों को लेकर कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है। सैंपल सर्वे आर्गनाइजेषन (एनएसएसओ) की अक्टूवर 2006 की रिपोर्ट में पिछड़ो की तादात 41 फीसदी, जबकि 2001 में सूबे के तात्कालीन सीएम रहे राजनाथ सिंह द्वारा बनायी गयी सामजिक न्याय समिति की रिपोर्ट में पिछड़ो की तादाद 43.13 फीसदी होने का आंकड़ा पेष किया था। इस समिति की रिपोर्ट के मुताबिक यादव 19.4, कुर्मी 7.45, कुषवाहा, षाक्य र्मार्य, सैनी और माली 6.69, कहार, कष्यप, 3.3,लोध 4.9, जाट2.6,निषाद 4.33, पाल-बघेल 4.43, राजभर 2.4, फीसदी है। जबकि 1931 के बाद यूपी में किसी प्रकार की कोई जातीय जनगणना ही नही करायी गयी है।

- जेपी गुप्ता


Published: 04-05-2024

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