तीन दिनों तक परमार्थ निकेतन के दिव्य वातावरण में रहकर लड़कियों ने योग, ध्यान, प्राणायाम, हवन, सत्संग, व्यक्तित्व विकास, जिज्ञासाओं का समाधान, गंगा आरती आदि परमार्थ परिसर में होने वाली विभिन्न गतिविधियों में सहभाग किया।
इस अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि वर्तमान समय में मानव तस्करी विश्व की प्रमुख समस्याओं में से एक है। तमाम कोशिशों के बावजूद इसे रोक पाना संभव नहीं हो पा रहा है और कोई भी राष्ट्र इस समस्या से अछूता नहीं है। इस दिशा में प्रयास तो किए जा रहे हैं, लेकिन पूर्णतया प्रभावी साबित नहीं हो पा रहे हैं। इसके पीछे गरीबी और अशिक्षा सबसे बड़ा कारण है साथ ही सामाजिक असमानता, क्षेत्रीय लैंगिक असंतुलन, बेहतर जीवन की लालसा, सामाजिक सुरक्षा की चिंता, जागरूकता की कमी जैसे अनेक कारण है परन्तु जीवन में अनुशासन, आध्यात्मिकता, संस्कारों की कमी और सम्मान की भावना भी इसे बढा रही है।
ज्ञात हो कि रेस्क्यू फाउंडेशन द्वारा रेस्क्यू की गयी लड़कियों के लिए विगत कई वर्षों से परमार्थ निकेतन में रिट्रीट का आयोजन प्रतिवर्ष किया जाता है। जहां उन्हें अपने घर की तरह रखा जाता हैं। विभिन्न गतिविधियों के द्वारा उनके मनोबल को बढ़ाने की कोशिश की जाती है तथा उनके मन में अपने ही प्रति जो हीन भावना व अपमान की भावना है उससे उपर उठने के लिए अनेक आध्यात्मिक गतिविधियों के माध्यम से उन्हें सिखाया जाता है।
वही त्रिवेणी आचार्य ने बताया कि वह अपने पति बालकृष्ण आचार्य के साथ 1993 में एक लड़की को बचाने के लिए गए थे। उस पहले रेस्क्यू ऑपरेशन ने सब कुछ बदल दिया क्योंकि वह 1 लड़की को बचाने गए थे और वहां पर चौदह लड़कियां और थी तब उन्हें एहसास हुआ कि अभी तो बहुत काम करना बाकी है। बचाई गई लड़कियों को नेपाल उनके गृह देश वापस छोड़ने में मदद करने के बाद उन्होंने मुंबई में रेस्क्यू फाउंडेशन की स्थापना की तब से इस संगठन ने हजारों महिलाओं और लड़कियों जिन्हें जबरन वेश्यावृत्ति में डाल दिया जाता है उन्हें रेस्क्यू कर हम अपने सेंटर्स में रखते हैं और उन्हें शिक्षा व व्यवसायिक शिक्षा दी जाती है।
1993 से यह संगठन पीड़ितों को व्यावसायिक यौन शोषण से मुक्त करने के लिए कार्य कर रहा है। कहा कि अब उनके जीवन का उद्देश्य ही महिलाओं और लड़कियों को जबरन वेश्यावृत्ति से बचाना व मानव तस्करी को रोकना है। आज रेस्क्यू फाउंडेशन की बच्चियों और उनके संरक्षकों ने परमार्थ निकेतन से विदा ली। उनके आंखों में आंसू थे, ऐसे लग रहा था मानों वे अपने ही घर को छोड़कर विदा ले रही हो। कोई भी जाने को तैयार नहीं था, ये जो भाव है वह अद्भुत है