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राजस्थान मांगे : योगी आदित्यनाथ जैसा सी एम

राजस्थान की जनता को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से कोई अलर्जी नहीं है. बतौर मुख्यमंत्री उन्होंने पांच सालों में राज काज भी ठीक ठाक किया है. पर इस बार वोटरों से बातचीत के दौरान ऐसी ध्वनि सुनाई दी कि राजस्थान में हर पांच साल पर सरकार बदलने का चलन रहा है. पर उन्हें भाजपा से यू पी के योगी के आदित्यनाथ जैसा सी एम चाहिए. रानी वसुंधरा राजे तो कतई नहीं, वरना गहलोत ही क्या बुरे हैं.

योगी आदित्यनाथ जैसा सी एम
योगी आदित्यनाथ जैसा सी एम

राजस्थान की जनता को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से कोई अलर्जी नहीं है. बतौर मुख्यमंत्री उन्होंने पांच सालों में राज काज भी ठीक ठाक किया है. पर इस बार वोटरों से बातचीत के दौरान ऐसी ध्वनि सुनाई दी कि राजस्थान में हर पांच साल पर सरकार बदलने का चलन रहा है. पर उन्हें भाजपा से यू पी के योगी के आदित्यनाथ जैसा सी एम चाहिए. रानी वसुंधरा राजे तो कतई नहीं, वरना गहलोत ही क्या बुरे हैं.

अशोक गहलोत का राजस्थान में आज वही रुतबा है जो कभी भाजपा के दिग्गज नेता भेरों सिंह शेखावत का हुआ करता था. आज की तारीख में कांग्रेस के खेमे में देश भर में जो कद्दावर सूबेदार हैं उनमे गहलोत का नाम पहले नंबर पर है. जहां मध्यप्रदेश में एक और कद्दावर कांग्रेसी सूबेदार कमलनाथ अपने घर के ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत से १५ महीने में ही राज पाट गँवा बैठे. वहीँ राजस्थान में राहुल गाँधी की यूथ ब्रिगेड के एक युवा नेता सचिन पायलट सर पटक कर रह गए गहलोत ने सरकार को आंच नहीं आने दी और ठसके के साथ पूरे पांच साल सरकार चला के दिखा दी.

बीते कई दशकों से राजस्थान की सियासी हकीकत कुछ ऐसी है कि वहां का वोटर हर पांच साल बाद रोटी पलट देता है. पर राजस्थान के प्रवेश द्वार अलवर से लेकर भरतपुर, सवाई माधोपुर, धोलपुर, करौली तक के दौरों में लोगों से सुनाई पडा कि भाजपा ने अगर वसुंधरा राजे को सी एम के रूप में सामने पेश किया तो गहलोत अपना किला बचा ले जायेंगे और हर चुनाव में सरकार बदल देने के रिकॉर्ड को पलट भी सकते हैं.

भाजपा के रणनीतिकारों और चुनाव प्रबंधकों को भी अपने सर्वेक्षणों में जनता के मन की यह बात जरूर सुनाई पड़ी होगी. शायद इसीलिए उसने वसुंधरा राजे को चुनाव लड़ने का टिकट तो थमा दिया है. लेकिन अब तक के अपने चुनाव अभियान में वसुंधरा राजे को फिर से मुख्यमंत्री बनाने के वादे से बचने का भरसक प्रयास किया है. साथ ही दिल्ली की सियासी चौसर से उठा कर ऐसे कई चेहरे राजस्थानी रण में उतार दिए हैं जो मुख्यमंत्री का ओहदा सँभालने की काबिलियत रखते हैं.

यू पी, हरियाणा, दिल्ली की सीमा से लगे इन जिलों के आम लोगों के मन की हांडी में पाक रहे चावलों को टटोलने के लिए जब ये पूछा गया कि योगी आदित्यनाथ जैसा चेहरा कौन हो सकता है ? अर्जुनराम मेघवाल, गजेन्द्र सिंह शेखावत, जयपुर राजघराने की राजकुमारी दिया कुमारी, कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौर जैसे कुछ नाम भी सामने रखे गए. तो अधिकांश के मुख से जवाब आया कि, ना इनमे से कोई नहीं. तो फिर ऐसा चेहरा कौन है आपके पास. तो नब्बे फीसदी लोगों में कुछ ने इशारों में तो कुछ ने साफ़ साफ़ कहा, है हमारे पास ऐसा चेहरा-बाबा बालकनाथ.

अलवर जिले की तिजारा विधानसभा सीट से बाबा बालकनाथ को टिकट देकर भाजपा ने शायद जनता के बीच से आ रही आवाज़ को आदर देने का काम किया है. चुनाव में भाजपा को विजय मिली तो मुख्यमंत्री कौन बनेगा तब की तब देखी जाएगी. पर फिलहाल तो उस हिन्दू वोटर की मांग पर भाजपा हाई कमान ने योगी जैसा एक चेहरा सामने कर दिया है. जो कन्हैया लाल टेलर हत्याकाण्ड, नूह, करौली हिंसा, आगजनी, मंदिर विध्वंस और गौकशी जैसे कारनामों पर गहलोत सरकार की चुप्पी से मुंह फुलाए बैठी है.

देश में हिंदुत्व के प्रखर पैरोकार यू पी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का करवा चौथ के अवसर पर एक और योगी बाबा बालकनाथ के नामांकन में जाना, वहां जनसभा में हिन्दू आस्था को चोट पहुँचाने वालों को ललकारना इस बात का संकेत है कि भाजपा हिंदुत्व के रंग को और गाढ़ा करने का इरादा रखती है. शासन के योगी मॉडल में हिंदुत्व के साथ सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास तो है ही विघ्न संतोषियों के लिए बुलडोजर का उपचार भी है. राजस्थान के शांति प्रिय लोगों को सरकार की वैसी हनक, धमक और इकबाल चाहिए जैसा यू पी में है. हिन्दू समाज भयमुक्त हो तो जातियों में बांटने के इंडिया गठबंधन के सारे मंसूबे धरे के धरे रह जायेंगे. इसलिए भाजपा के चुनावी एजेंडे को सबसे बड़ा सहारा राम का है जो जाति पांति के बंधनों से परे सभी हिन्दुओं के आराध्य हैं.

योगी आदित्यनाथ का तिजारा जा कर यह कहना कि अब वो दिन दूर नहीं जब यू पी की तरह राजस्थान में भी बुलडोजर चलेगा. ये बुलडोजर जहाँ एक तरफ दुष्टों का उपचार है, वहां विकास के लिए रास्ता बनाने का यंत्र भी है. हम सज्जनों का संरक्षण करते हैं, मगर दुष्टों को सजा भी देते हैं. उन्होंने उदयपुर के कन्हैया लाल हत्याकांड को गहलोत सरकार की नाकामी बताया. कांग्रेस की गहलोत सरकार ने कन्हैया लाल के परिवार को पांच लाख रुपये मुआवजा बड़ी मुश्किल से दिया, जबकि गौ तस्करों को २५ -२५ लाख रुपये मुआवजा दे रही है. यह कहाँ का न्याय है.

पिछले विधानसभा चुनाव में अलवर जिले में हनुमान जी को आदिवासी बताने वाले योगी ने इस बार भी बजरंगबली को याद किया. उन्होंने कहा कि देश की हर समस्या का नाम कांग्रेस है.  इसका सोच तालिबानी है जिसने भक्ति और शक्ति की धरती राजस्थान की परम्पराओं को कलंकित करने का काम किया है. ऐसे तालिबानी सोच का इलाज बजरंगबली की गदा ही है. उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में बहन बेटियां सुरक्षित हैं. गौवंश की देखभाल अच्छी तरह करके बूचडखानों में जाने से रोका जा रहा है.

बाबा बालकनाथ उसी गोरखनाथ सम्प्रदाय के अनुयायी संत हैं जिसके स्वयं योगी आदित्यनाथ हैं. बालकनाथ अलवर से चुनाव जीत कर संसद में पहुंचे है. उन्हें भी अपने गुरु बाबा चान्दराम से यह सीट उसी तरह उत्तराधिकार में प्राप्त हुई है जैसे योगी आदित्यनाथ को अपने गुरु महंत अवैद्यनाथ से मिली थी. महंत अवैद्यनाथ को जिस तरह राम मंदिर आन्दोलन का अगुवा कहा जाता है उसी तरह बाबा चाँदराम की ख्याति मेवात क्षेत्र में मुस्लिमों की घर वापसी कराने में रही है. आदित्यनाथ और बालकनाथ दोनों ही अपने गुरुओं के काम को कुशलता से आगे बढ़ा रहे हैं.

तिजारा सीट मेवात क्षेत्र में आती है जो राजस्थान, हरियाणा और कुछ उत्तर प्रदेश में आता है. मेवाती मुसलमानों में अधिकांश वो हिन्दू हैं जो कालांतर में दबाव के चलते धर्म बदलने को मजबूर हुए. पर उन्होंने शादी बियाह और अन्य आयोजनों में हिन्दू रीति रिवाजों, संस्कारों, परम्पराओं का त्याग नहीं किया. शादियों में हिन्दुओं की तरह आज भी उनके यहाँ सात फेरों का चलन है. संगीत प्रेमी ये कौम आम तौर पर शांतिप्रिय रही लेकिन पिछले कुछ दशकों से कट्टरपंथियों ने विदेशी चंदे के दम पर यहाँ के माहौल को गंदा करने का प्रयास किया है. नूह के तीन सौ साल पुराने शिव मंदिर में हिंसा, आगजनी और विध्वंस की वारदात इसका ताज़ा उदहारण है. उस से पहले यही सब हिन्दुओं के पवित्र आस्था केंद्र करौली में हुआ.

डा. मनमोहन सिंह की यू पी ए सरकार में गृह राज्य मंत्री रहे अलवर नरेश भंवर जितेन्द्र सिंह को हरा कर बाबा बालकनाथ संसद में पहुंचे थे. अब विधानसभा में उनकी उम्मीदवारी से अचानक राजस्थान में आकर्षण का केंद्र बनी तिजारा सीट पर उन्हें बसपा के टिकट पर लड़ कर जीते वर्तमान विधायक इमरान खान को चुनौती देनी पड़ रही है. इमरान इस बार कांग्रेस के उम्मीदवार हैं. राम नाम का सहारा, मोदी, योगी की मेहनत और शाह का प्रबंधन अगर हिन्दू वोटरों को एकजुट कर गया तो बालकनाथ की जीत पक्की है क्योंकि यहाँ हिन्दू वोटरों की तादाद 59 परसेंट है और 9 परसेंट वोटर सिख और जैन हैं. भाजपा यहाँ से एक चुनाव जीती भी है. कांग्रेसी इमरान को उम्मीद है कि वो 38 परसेंट मुस्लिम आबादी और कांग्रेस पार्टी के वफादार हिन्दू वोटरों के सहारे बाबा को परस्त कर सकते हैं.

इस ताज़ा चुनावी घमासान, जिसे 24 के लोकसभा चुनाव के पहले का सेमिफाइनल कहा जा रहा है, में कहीं से भी अशोक गहलोत को सिरे से ख़ारिज करके अति आत्मविश्वास भाजपा को भारी पड़ सकता है. उनका जीवन पिता के साथ जोधपुर की गलियों में जादू का शो करके शुरू हुआ था और जादूगरी का बोप कौशल उनकी राजनीतिक पारी में भी साफ़ दिखाई देता रहा है. भाजपा की तमाम घेरेबंदी को धता बता कर वो अपना किला बचा भी सकते हैं. राजस्थान की जनता आदतन तवे पर रोटी को पलटती रहती है पर गहलोत के नंबर उसकी निगाह में कम नहीं हुए हैं. उनका एक अपना पत्ता पायलट उनका खेल बिगाड़ सकता है तो भाजपा की अनमनी रानी वसुंधरा का तुरुप का पत्ता उनका खेल बना भी सकता है.

सो लड़ाई कांटे की है.  

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं)

 

   


Published: 02-11-2023

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