लखनऊ। कला को अभिव्यक्त करने वाला कलाकार पेंसिल, ब्रश व नाना प्रकार के कलर के माध्यम से अपने भावों को जब कैनवास पर उकेरता है तो निश्चित ही वो समाज को दर्पण दिखाने का कार्य करता है। कहा भी गया है ‘‘कला समाज का दर्पण होता है’’।
साहित्य, संगीत और चित्रकला जी हां, कला के इस अप्रतिम सौन्दर्य से परिपूर्ण परिदृृश्य देखने को मिला गत 8 से 10 फरवरी तक राजधानी के छतर मंजिल परिसर में। अवसर था राज्य ललित कला अकादमी, उत्तर प्रदेश का 60वां स्थापना दिवस समारोह।
इस त्रिदिवसीय उत्सव पर अकादमी द्वारा आयोजित विविध कार्यक्रमों का आयोजन खुले आकाश के नीचे ऐतिहासिक इमारत छतर मंजिल परिसर में किया गया, जहां कलाप्रेमियों तथा राजधानीवासियों ने आकर स्वातंत्र्य वीर अर्चन चित्रकला शिविर, 34वीं राज्य स्तरीय वार्षिक कला प्रदर्शनी, नव दुर्गा नौ छवि, भारत रत्न अटल बिहारी बाजपई जी के व्यक्तित्व व कृृतित्व पर आधारित प्रदर्शनी के पुरस्कार वितरण तथा अलग-अलग संस्थानों से आमंत्रित कलाकारों की चित्रकला व मूर्तिकला की प्रदर्शनी का अवलोकन साथ ही साहित्य व संगीत विविध कार्यक्रमों में शामिल होकर कार्यक्रम को सफल व सार्थक भी बनाया।
‘‘चौरी-चौरा शताब्दी (1922-2022) महोत्सव और स्वातंत्र्य वीर अर्चन’’ यह मुख्य आकर्षण था चित्रकला शिविर का। विषय को ध्यान में रखते हुए पुष्पा सिंह, अजित सिंह, राजकुमार सिंह, राजीव कुमार रावत, पौलोमी विश्वास, शृद्धा सक्सेना, दुर्जन सिंह राणा, अंजू, डा0 ममता बंसल, रचना गुप्ता और मनीषा दोहरे जैसे उत्कृष्ट कलाकारों ने शिविर में बनाये अपने अपने चित्रों के माध्यम से जन-जन को संदेश दिया।
महात्मा गांधी के समस्त आंदोलन से प्रारंभ और शीर्ष पर लाल किले पर सुशोभित भारतीय ध्वज। रचना गुप्ता के इस चित्र में संदेश था कि ये आजादी जो हमें मिली है वो इतनी सहज न थी जितना कि हम समझते हैं। 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की चर्चा करें तो अवध की बेगम और महिला स्वतंत्रता सेनानी बेगम हजरत महल को भी याद किया जाता है उनके अदम्य साहस, विवेक, वीरता और शौर्य के लिए, अपने चित्र में इस महान महिला स्वतंत्रता सेनानी को उकेरा मनीषा दोहरे ने। पं0 राम प्रसाद बिस्मल, अशफाक उल्ला खां, रोशन सिंह और चन्द्रशेखर आज़़ाद इन महान क्रान्तिकारियों को अपने चित्र में उकेरकर कलाकार अंजू ने यह दर्शाया कि काकोरी कांड में इन क्रान्तिकारियो का ध्येय सरकारी खजाने को लूटकर निजी स्वार्थो की पूर्ति करना नहीं, अपितु अपनी भारत माता को परतंत्रता की बेड़ि़यों से मुक्त करना था। डा0 ममता बसंल और पुष्पा सिंह ने भी चैरी-चैरा घटना को अपने अपने कैनवास पर चित्रित किया। बुलंद शहर ने आये दुर्जन सिंह राणा ने अपने चित्र में चन्द्रशेखर आजाद, सरदार भगत सिंह और नेताजी सुभाष चंद्र बोस और ऊपर पुष्प अर्पित करते हुए हाथ को दर्शाया। अपने चित्र के बारे में उन्होंने बताया कि क्र्रान्तिकारियों की बात जब भी की जाती है तो सर्वप्रथम सरदार भगत सिंह को स्मरण किया जाता है। चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय हो या नेताजी सुभाष चंद्र बोस का, इन सभी का व्यक्तित्व व कृृतित्व समस्त जन-जन के लिए आज भी प्रेरणाप्रद है और सदैव रहेगा, चित्र में अर्पित करते हुए पुष्प द्वारा उन्होंने इन महान अमर वीर सपूतों को अपनी श्रद्धा सुमन अर्पित की है।
एक अन्य चित्र में दारोगा गुप्तेश्वर सिंह, भगवान अहीर और उनके साथी को नाम सहित चित्रित किया कलाकार राजीव कुमार रावत ने अपने कैनवास में। राजीव बताते हैं कि इन सभी का चैरी चैरा घटना से गहरा सम्बन्ध था। चैरी-चैरा घटना का जिक्र जब भी होता है भगवान अहीर व उनके साथियों और गुप्तेश्वर सिंह को भी याद किया जाता है। कानपुर के राजकुमार सिंह ने अपने चित्र में महात्मा गांधी और नेताजी सुभाषचंद्र बोस को दिखाया, जो बयां कर रहा था कि जब जैसी परिस्थिति हो हमें स्वयं को भी उसी के अनुरुप ढालना चाहिए फिर चाहे हमारे समक्ष अहिंसा का मार्ग हो या फिर ंिहंसा का। अजित सिंह ने देश की आज़़ादी में परिवार के किसी एक सदस्य का ही नहीं, अपितु एक एक सदस्य का अमूल्य योगदान था उस समय, इसको उन्होंने चित्र के माध्यम से बताने का एक सफ़ल प्रयास किया।
परिसर में चित्रकला शिविर के अलावा उ0 प्र0 के अलग-अलग क्षेत्रों से आये कलाकारों की चित्रकला व मूर्तिकला प्रदर्शनी ने छतर मंजिल परिसर के वातावरण को पूरी तरह से कलात्मक बना दिया। डा0 शकुन्तला मिश्र राष्ट्रीय पुर्नवास विश्वविद्यालय लखनऊ, बस्ती विकास समिति, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी, का0 सु0 साकेत पी0 जी0 कालेज अयोध्या, इलाहबाद विश्वविद्यालय प्रयागराज, बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झांसी, ललित कला संस्थान व आगरा कालेज आगरा,
पं दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर, छत्रपति साहूजी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर, डा0 राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय अयोध्या से आये कलाकारों की चित्रकला व कलाकृृतियों को कलाप्रेमियों ने देखा, सराहा और कलाकारों का उत्साहवर्धन भी किया।
बस्ती के महेश वर्मा, वेकेंट रमन व केशव मोदी की फाइवर निर्मित गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर और बनारस के रवि प्रजापति और सुशील विश्वकर्मा की पोस्टर कलर से निर्मित चित्र व विभिन्न कलाकृृतियां, अयोध्या के दीपक कुमार तिवारी, रितिक प्रजापति द्वारा प्रदर्शनी में आये कलाप्रेमियों का चारकोल से लाइव चित्र निर्माण, रितुराज, भीम सिंह, प्रतीक द्विवेदी द्वारा प्रगैतिहासिक काल से लेकर आधुनिक काल, कोरोना काल की स्थिति परिस्थिति, झांसी के गजेन्द्र सिंह और देव नामदेव के चित्रों में किन्नरों के संपूर्ण जीवन परिचय को दर्शाकर समाज को एक स्वस्थ संदेश दिया कि भले ही उनका जीवन सामाजिक प्राणी सदृश ना हो परंतु उनका उद्देश्य होता है सिर्फ व सिर्फ दुआएं देना। आगरा के सचिन शर्मा और सुदेश कुमार ने अपने चित्रों के बारे में बताया कि वृृद्धावस्था में हम केवल चेहरे पर आई झुर्री व घटती खूबसूरती को ही निहारते हैं और नज़र अंदाज करते हैं उनकी आन्तरिक सुंदरता को, इस कलाकार की मानें तो मानव उसे तभी देख सकता है जब वो आन्तरिक रुप से भी उतना ही खुबसूरत हो।
गोरखपुर से आये शिवम शर्मा ने कल्याणकारी भगवान शिव और उनके परम भक्त नंदी के माध्यम से लव अफैक्शन को बखूबी दर्शाया, कि भक्त और भगवान दोनों एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते। जयंत गुप्ता ने टेराकोटा कृृति में हाथी और बच्चे के माध्यम से मां का अपने बच्चे के प्रति वात्सल्य प्रेम, अनुुराग मौर्या की फाइबर कृृति वृृृक्ष से लिपटा सृृप जो कह रहा था कि प्रकृृति की सुरक्षा व संरक्षण। जिस तरह से आज पेड़-पौधों का दोहन हो रहा है। पर्यावरण को दूषित किया जा रहा है। प्रकृृति और हरियाली से दूर सिर्फ मानव ही नहीं, इस धरा पर समस्त जल जीव-जन्तु, पशु-पक्षी भी होते जा रहे हैं। क्या ऐसे में इनका विलुप्त होना स्वाभाविक नहीं। एक पल ठहरिए, रुकिए और सोचिए ये प्रकृति भी हम सबकी मां है। क्या इस मां को सुरक्षित व संरक्षित करना हम सबका दायित्व नहीं। पतले तार, ग्लू कील और वुड से निर्मित मानव कृति के माध्यम से वंदना गुप्ता ने बताया कि तनाव के समय मानव की स्थिति कैसी होती है। प्रतीक मिश्र, दीपक बाजपेई, राम वीर और शिल्पी कनौजिया के बनाये चित्रांे व कलाकृृतियों को भी कलाप्रेमियों ने खूब सराहा।
महोत्सव के अंतिम दिन शिविर में आये कलाकारों को स्मृति चिह्न व प्रणाम पत्र देकर सम्मानित किया गया और इसी के साथ साहित्य, संगीत व चित्रकला से ओतप्रोत त्रिदिवसीय महोत्सव का समापन हुआ।
चौरी-चौरा शताब्दी महोत्सव वर्ष 2021 से 2022 तक उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जगहों पर मनाया जायेगा।
(बबिता बसाक)