अष्टशक्तियों की अवधारणा का निहितार्थ
डा चन्द्रविजय चतुर्वेदी : प्रयागराज : शक्ति से ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का कार्यव्यापार संचालित होता है. किसी भी प्राणी, किसी भी प्रणाली किसी भी व्यवस्था के क्रियाशील, प्रवृत्तिशील या सक्रिय होने के लिए शक्ति या ऊर्जा की आवश्यकता होती है. इसी सनातन सत्य पर आधुनिक विज्ञान का क्वांटम सिद्धांत आधारित है. यही सत्य ब्रह्मसूत्र में उदघाटित किया गया है कि शक्ति के बिना परमेश्वर सृष्टा ही नहीं हो सकते. अध्यात्म अतीन्द्रिय चेतना के विकास का विज्ञान है जो चेतन प्राणी को उसकी शक्ति का दिग्दर्शन कराती है. आधुनिक विज्ञान वह अध्यात्म है जिसने प्रमाणित किया कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड और उसमे उपस्थित जड़-चेतन का अस्तित्व ताप, प्रकाश, ध्वनि, चुम्बकत्व, विद्युत, ब्रह्मांडीय विकिरण, रेडियोधर्मी विकिरण और जीवनी शक्ति का कार्य व्यापार है. आइंस्टीन ने ऊर्जा-शक्ति को ही अंतिम तत्व कहा जिसका रूपांतरण भौतिक द्रव्य में होता रहता है और भौतिक द्रव्य अपने भौतिक अस्तित्व को समाप्त कर ऊर्जा-शक्ति के वृहद् रूप में रूपांतरित होते रहते हैं. शास्त्रों में अष्टशक्तियों का उल्लेख आता है जो अपने वाहनों से शक्ति का संचरण, सम्प्रेषण करती हैं. प्रथम शक्ति-ब्राह्मी है जिसके सम्बन्ध में कहा गया है-ब्राह्मी हंस समारुढा. ब्राह्मी शक्ति का वाहन हंस है. वाहन का तात्पर्य माध्यम है जिससे ऊर्जा-शक्ति का संचरण होता है. हंस जीवात्मा है, ब्राह्मी शक्ति से सृष्टि का सृजन होता है, यही क्रिया शक्ति है. जीवात्मा ही सृष्टि शक्ति का परिचालक है. दूसरी शक्ति है-माहेश्वरी. कहा गया है माहेश्वरी वृषारूढ़ा. माहेश्वरी लय शक्ति है जिसका वाहन वृष या धर्म है जो शास्त्रीय विधि विधान है. माहेश्वरी शांति ही ज्ञानशक्ति है जो धर्म के आश्रय से लय की और अग्रसर होता है. लय, सृजन से जुड़ा है. प्रकृति में लय सृजन प्राकृतिक नियमो -ऋत के अनुसार होता रहता है. तीसरी शक्ति है -कौमारी जिसके लिए कहा गया है -कौमारी शिखिवाहना. कौमारी चैतन्य शक्ति है जिसके संचरण का माध्यम है मयूर. मयूर सर्पभक्षी होता है. टेढ़ी चाल चलने वाले को सर्प कहते हैं-जो आसुरी भाव का द्योतक है. मयूरधर्मी जीवात्मा ही चेतनशील रह सकेगा. चौथी शक्ति है -वैष्णवी जिसके लिए कहा गया है-वैष्णवी गरुणासना. वैष्णवी पालन करने वाली शक्ति है इस शक्ति का संचरण गरुण द्वारा होता है. गरुण वेदरूप हैं जो ज्ञान और कर्म दो पंखों के सहारे गति करते हैं. गरुण का प्रतीक कुटिल तत्वों के नाशकर्ता के रूप में भी है. गरुण भाव से कुटिल तत्वों का विनाश करते हुए ज्ञान और कर्म से पालन शक्ति का संचरण संभव है. पांचवी शक्ति है वाराही. वाराह का अर्थ काल होता है -काल अर्थात टाइम स्पेस. मिथक है कि वाराह ने पृथ्वी को पाताल से अपने दांतों से निकला. इसका प्रतीकार्थ है सृष्टि का कारण काल शक्ति है इसका कोई वाहन नहीं है. काल स्वतः ही आधाररूपा है. षष्टम शक्ति नृसिंही है. नृ का तात्पर्य व्यक्ति से है और सिंह श्रेष्ठता का बोधक है. श्रेष्ठ शक्ति ब्रह्मविद्या है जो हिरण्यकशिपु को समाप्त करती है. हिरण्य आत्मतत्व का वाचक है कशिपु. वह अहम है जो आत्मा को ढक लेता है. इसका शमन ब्रह्मविद्या की शक्ति से होता है. सप्तम शक्ति है ऐन्द्री. ऐन्द्री गजसमारुढा. ऐन्द्री शक्ति का वाहन ऐरावत गज है जो विशिष्ट गति से गतिमान होता है-ऐन्द्री, इंद्र की शक्ति है. इंद्र मेघराज हैं जिनकी शक्ति प्रकृति की तड़ित शक्ति है. अष्टम शक्ति है-चामुंडा. चण्ड और मुंड प्रकृति और निवृत्ति के प्रतीक हैं. चामुंडा शक्ति प्रकृति और निवृत्ति का विनाश करने वाली प्रलय शक्ति है जिसके लिए किसी आलम्बन की आवश्यकता नहीं है.