घर घर विराजेंगे विघ्नहर्ता
साल 1893 में महाराष्ट्र राज्य के पुणे शहर में अपनी भारत मां को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त कराने, सभी धर्म संप्रदाय के लोगों को एकता के सूत्र में बांधने, देश के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने वाले लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने सार्वजनिक गणेशोत्सव का शुभारम्भ किया।
वहीं उत्तर प्रदेश के बनारस में 1895 और राजधानी लखनऊ में 1921 में इस उत्सव की शुरूआत हुई।
गणेशोत्सव, महाराष्ट्र राज्य का मुख्य पर्व होने के बावजूद आज यह पर्व देश के विभिन्न अंचलों और विदेशों में भी धूम धाम से मनाया जाता है।
राजधानी लखनऊ में भी गणेशोत्सव का उत्साह हर साल देखने को मिलता है, शहर के विभिन्न स्थानों मवैया, नरही, आलमबाग, चौक , यहियागंज, सुंदरबाग, आई टी चौराहा, हुसैनगंज, फूलबाग, नजीराबाद, इंदिरा नगर, गोमती नगर आदि विभिन्न स्थानों पर सार्वजनिक और घर घर डेढ़, छः, नौ और 11 दिन के लिए गणपति की स्थापना की जाती है।
लखनऊ में पुराना आर टी ओ ऑफिस समीप महाराष्ट्र समाज भवन में विगत 1978 से यह उत्सव मराठी रीति रिवाज से मनाया जा रहा है।
राजधानी में लगभग 250 मराठी परिवार हैं जो अपने अपने घरों में बप्पा की स्थापना कर विधि विधान से पूजा अर्चना करते हैं साथ ही समाज के सार्वजनिक गणेशोत्सव में भी सपरिवार हर्षोल्लास पूर्वक इस पर्व में शामिल होते हैं।
11 दिवसीय इस उत्सव में स्थापना, हरिकीर्तन, गायन, नाटक साथ ही नाना प्रकार की प्रतियोगितायें समाज द्वारा आयोजित की जाती हैं।
महिलाओं द्वारा हल्दी कुमकुम और रविवार को मराठी व्यंजनों का भोग बप्पा को निवेदन किया जाता है और तत्पश्चात् सभी एक साथ बप्पा का प्रसाद ग्रहण करते हैं।
11वें दिन शोभा यात्रा संग ’गणपति बप्पा मोरया पुढच्या वर्षी लवकर या’ की जयघोष के साथ अनन्त चतुर्दशी के दिन गणेशोत्सव का समापन होता है।
- बबिता बसाक, लखनऊ