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नेपाल-भारत : एक थे, एक हैं, एक रहेंगे

नेपाल ने संवत 2079 चैत की बेला में तीन दिन तक अपनी तराई में हम भारतीयों के दल को अंक भर कर जिस तरह दुलारा, कहा, सुना, गुना उससे पक्का यकीन हो गया कि भले इंसानों ने जमीन पर लकीर खींच कर हमें पड़ोसी बना दिया हो, हम आज से नहीं अनादि काल से एक थे, एक हैं और एक रहेंगे।

एक थे, एक हैं, एक रहेंगे
एक थे, एक हैं, एक रहेंगे

नेपाल ने संवत 2079 चैत की बेला में तीन दिन तक अपनी तराई में हम भारतीयों के दल को अंक भर कर जिस तरह दुलारा, कहा, सुना, गुना उससे पक्का यकीन हो गया कि भले इंसानों ने जमीन पर लकीर खींच कर हमें पड़ोसी बना दिया हो, हम आज से नहीं अनादि काल से एक थे, एक हैं और एक रहेंगे।

उत्तरप्रदेश के बहराइच जिले से सटी नेपाल की नगरी नेपालगंज प्रवास में बानक बना दो देशों के संबंधों में भाषा का योगदान। इस विषय पर नेपालगंज की उपनगर महापालिका के सौजन्य से महेन्द्र पुस्तकालय का आयोजन सहर्ष सामने था। हम पड़ोसी का चुनाव नहीं कर सकते पर नेपाल जैसे अच्छे पड़ोसी सौभाग्य से मिलते हैं। राजतंत्र से प्रजातंत्र की काया में आने के काल में भले ही संबंधों में थोडा क्षरण हुआ हो लेकिन दोनों ओर की प्रजा आपस में ऐसे घुली मिली रही है जैसे दूध में शक्कर | महाभारत काल से ही हिमालय की पावन भूमि, विश्व के अकेले हिंदू राष्ट्र को भारत का मित्र बनाये रखने के लिये हजारों वर्षों से जाने कितने दिव्य इंसानों ने असंख्य प्रयास किये होंगे|

तो ब्रज की रज के एक कण अर्थात मैंने इस आमंत्रण को आशीर्वादस्वरूप ग्रहण कर लिया और डेढ़ दर्जन उत्साही रचनाधर्मियों के साथ मूर्ख दिवस अंग्रेजी में एक अप्रैल 2023 यानी संवत 2079, 18 गते को अवध की धरती से ज्ञान और शांति की पीठ की ओर निकल पड़े। ध्येय रखा समान संस्कृति, साहित्य के संबल के सहारे समाज में आपसी दरस, परस और संवाद को बढ़ावा देना। साहित्यिक और आध्यात्मिक पर्यटन इस अभियान को और गति कैसे प्रदान कर सकता है। देशों के राजनेता अपने तरीके से संबंध सुधार के प्रयास करते ही रहे हैं पर समाज की सत्ता सदैव उनसे ऊपर रही है। समाज जब मन से एकाकार होने लगता है तो दो देशों के बीच की मित्रता का स्वाभाविक विकास होता है और अड़चनें हों भी तो उन्हें सुलझाना आसान हो जाता है |

समाज को एकरस रखने में संस्कृति, साहित्य और भाषा का योगदान सर्वोपरि होता है। इसलिये तय हुआ कि साहित्य के विविध रंगों के गुलदस्ते के साथ मीडिया4सिटिजन के बैनर तले कवियों, कहानीकारों, व्यंग्यकारों, रंगकर्मियों के दल को ले जाया जाये। इस मंशा से दल में नामचीन कवि राजेन्द्र वर्मा, लेखिका स्नेहलता स्नेह, व्यंग्यकार अलंकार रस्तोगी, अवध भारती संस्थान के मुखिया डा. रामबहादुर मिश्र, पत्रकार, कवि प्रदीप सारंग, शिक्षक डा. आराध्य शुक्ल, कथा रंग फाउंडेशन की अध्यक्ष नूतन वशिष्ठ, उपाध्यक्ष पुनीता अवस्थी, सचिव अनुपमा शरद, कोषाध्यक्ष ममता शुक्ल, सदस्य अमिता पांडेय, नासिक से समाजसेवी मनीषा खटाटे, लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी और संस्कृत विभाग के होनहार छात्र द्वारिकानाथ पांडेय, अनमोल मिश्र और जय सिंह भी आ जुड़े और पत्रकारिता को जल्दी में सलीके से लिखा गया इतिहास की दलील दे कर रचनाधर्मियों के दल में एक अदद पत्रकार यानी कि मुझे संयोजक का दायित्व निभाना था |

पहले दिन शाम को ही सौ साल पुराने महेन्द्र पुस्तकालय में भारत से गये दल की मेजबानी की गयी। नेपाली साहित्यकारों के शीर्ष पुरुष सनत रेग्मी ने भारतीय मेहमानों का स्वागत करते हुए विषय का प्रवर्तन किया। दोनों देशों के हजारों साल पुराने आत्मीय संबंधों की याद दिलायी। भारतीय भाषाओं और नेपाली भाषाओं में लिखे साहित्य के परस्पर अनुवाद की आवश्यकता जताई तो ये भी कहा कि सरस्वती के उपासकों को ऐतिहासिक स्थलों के प्रचार प्रसार की खातिर साहित्यिक पर्यटन के दरवाजे खुले रखने चाहिए।

नेपाल के बांके जिले के प्रमुख व्यापारिक नगर नेपालगंज के महेन्द्र पुस्तकालय के अध्यक्ष बलराम यादव और नेपालगंज उपनगरमहापालिका के कार्यवाहक मेयर कमरुद्दीन राई, कार्यकारिणी सदस्य बसंत कनौजिया, उपाध्यक्ष पंकज श्रेष्ठ, सचिव मणि अर्याल और हरि तिमिलसीना ने तो भारतीय दल को हाथों हाथ लिया ही। नेपाल भाषा आयोग के विद्वान सदस्य डा. अमर गिरी, गोपाल अश्क और मातृभाषा साहित्य प्रतिष्ठान से हंसावती कुर्मी 'हंसा' राजधानी काठमांडू से विशेष रूप से इस तीन दिवसीय नेपाल-भारत साहित्य संगोष्ठी में पधारे। भारतीय दल से मिले जुले, धैर्य से सुना समझा और भाषा और संस्कृति के आधार पर टिकी मधुर रिश्तों की डोर को थामे रखने और मेल मिलाप के सिलसिले को जारी रखने का इरादा जाहिर कर गये।

महेंद्र पुस्तकालय की दास्तान भी दिलचस्प है | पचहत्तर साल पहले राणाशाही के दौर में विद्या का यह मंदिर उस समय मुट्ठी भर पुस्तक प्रेमियों की देन है जब नेपालगंज में स्कूल नहीं खुले थे| पचपन साल पहले राजा महेंद्र वीर विक्रम शाह देव ने ४५ हज़ार रुपये अनुदान दे कर इसे सेहतमंद किया और उसके बाद से इसका नाम महेंद्र पुस्तकालय पड़ गया| तकनीक के युग आज भले ही इसकी अलमारियों में करीने सजी किताबें सारा दिन गुण ग्राहक की राह तकती रहतीं हों पर गुज़रा वक्त ऐसा भी रहा जब उन से बौद्धिक खाद पाकर ही इस आँगन से एक से एक साहित्यकार, बुद्धिजीवी, शिक्षाविद, समाजसेवी पुष्पित पल्लवित हुए हैं. इसके वर्तमान अध्यक्ष बलराम यादव के अनुसार अब लोगों में पढ़ने की आदत का लोप होने से पुस्तकालय में आने वालों की संख्या कम हुई है। इंटरनेट की आंधी ने ये हाल किया है। पर इस को संजोये रखने का पूरा प्रयास किया जा रहा है।


हिमालय की गोद में बसे भारत के मजबूत कंधे नेपाल में भी भारत की तरह भाषायी विविधता का भरापूरा गुलदस्ता है। भाषा विशेषग्य गोपाल अश्क बताते हैं बेशक पूरे नेपाल की राजभाषा नेपाली है पर पश्चिम से कॉकेशियन, उत्तर और पूर्व से मंगोलियन और दक्षिण से द्रविड़ प्रभाव के चलते सौ से ऊपर बोलियां हैं| तो दक्षिण नेपाल में एक बड़े वर्ग की भाषा भोजपुरी, मैथिली, अवधी, मधेशी और थारू है जो उत्तरप्रदेश, बिहार से लेकर बंगाल तक सीमावर्ती क्षेत्रों में दोनों और बोली जाती हैं । इसी नाते दोनों देशों के बीच रोटी बेटी के रिश्ते हैं। जाहिर है सरोकार साझे हैं और जब आचार विचार एक से हों तो वो संबंध अटूट बन जाया करते हैं। बाहर की हवा से रिश्तों पर जरा सी आंच आती भी है तो कुछ सूखे पत्ते भले झड़ जायें पर जड़ें टस से मस नहीं हुआ करती। हंसावती कुर्मी दोनों देशों की तराई में बोली जाने वाली भाषाओँ और नेपाली भाषा के अनुवाद के काम में प्रयासरत हैं |अवधी में कविताएँ भी लिखतीं हैं | मार्गदर्शक की भूमिका में डा. अमर गिरी इस दिशा में सक्रिय हैं हीं| उन्होंने भी साहित्य के प्रसार में तकनीक और मंचीय वाचन के भारतीय दल के प्रयास को सराहा और नेपाल में भी इसका अनुसरण करने की बात कही |

संगोष्ठी के अगले दिन 2 अप्रैल को दोनों देशों के रचनाधर्मियों के परस्पर परिचय और प्रस्तुतियों का आयोजन था। संगोष्ठी के मुख्य वास्तुकार सनत रेग्मी जी ने एक बार फिर नेपाल भारत के महाभारतकाल से लेकर आज तक के संबंधों पर एक विहंगम दृष्टि के साथ सब से साहित्य के अनुवाद के काम को आगे बढ़ाने को आग्रह किया और कहा कि साहित्यिक पर्यटन इसमें बूस्टर डोज का काम करेगा। रेग्मी जी ने माना नेपाल के साहित्य पर भारतीय साहित्यकारों का गहरा प्रभाव रहा है। वो खुद लखनऊ में अमृतलाल नागर से मिले थे। भगवती चरण वर्मा, यशपाल का भी जिक्र किया। भारत की ओर से डा.आराध्य शुक्ल ने भाषा के योगदान और लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के छात्र द्वारिकानाथ पांडेय ने संबंधों के विस्तार में युवाओं की भूमिका विषय पर सार्थक और प्रभावी कार्यपत्र प्रस्तुत किये। द्वारिका ने आज के युवा वर्ग में डिजिटल दीवानगी के चलते साहित्य के प्रसार में इंटरनेट के प्रयोग को भी शामिल करने की वकालत की। साथ ही कहा कि महाभारत काल से संबंधों के चलते रामायण सर्किट, बौद्ध सर्किट की तरह महाभारत सर्किट के विकास पर भी विचार किया जाना चाहिए |

नेपाल भाषा आयोग के सदस्यों डा. अमर गिरी, गोपाल अश्क, नेपाल प्रज्ञा संस्थान की अनुवादक हंसावती कुर्मी की गरिमामय उपस्थिति में अवध भारती संस्थान लखनऊ के अध्यक्ष डा. रामबहादुर मिश्र ने उत्साहित होकर अवधी के संरक्षण के लिये एक संस्था के गठन का ऐलान कर दिया। साथ ही नेपाल के साहित्यकारों के दल को भारत आने का न्यौता भी दिया। भारतीय दल की कथा रंग टोली ने खड़ी बोली और अवधी की कहानियों के मंचीय वाचन के प्रयोग से जहां काठमांडू से आये हाकिमों को उसका अनुसरण नेपाल में भी करने के लिये प्रेरित किया| नूतन वशिष्ठ, अनुपमा शरद और पुनीता अवस्थी ने शिवानी की कहानी लाल हवेली और अमिता पाण्डेय, द्वारकानाथ पाण्डेय और जय सिंह ने वंशीधर शुक्ल की कहानी काजी का नौकर के भावपूर्ण वाचन को सराहना मिली |

वरिष्ठ कवि राजेन्द्र वर्मा, स्नेहलता स्नेह, अनमोल मिश्र और  कौन्तेय जय की पद्य रचनाओं ने भावनाओं के हिंडोले में खूब झुलाया| ऑडियो मीडिया विशेषग्य और कथाकार नवनीत मिश्र ने जब भारत नेपाल के नाज़ुक रिश्तों को टटोलती अपनी कहानी रिश्ते का वाचन किया तो उसके क्लाइमेक्स ने दर्शकों को तालियाँ बजने पर मजबूर कर दिया. अलंकार रस्तोगी ने राम रावण युद्ध की टेली कवरेज वाले व्यंग्य से सबको ऐसा गुदगुदाया कि रेग्मी जी की हंसी तो पाठ होने तक रुकी ही नहीं| नेपाल की ओर से भी महानंद ढकाल, नवीन अभिलाषी, कृष्णा पाण्डेय, भदई सिंह, भीम बहादुर शाही, पुष्कर रिजाल, और बी पी अस्तु ने भी कविता पाठ किया, कुल मिलाकर यह समागम ऐसा छजा कि कार्यवाहक मेयर कमरुद्दीन राई ने हर साल ऐसे आयोजन का वादा तक कर डाला।

तीसरा दिन उत्तर दिशा में 98 किलोमीटर दूर बर्दिया नेशनल पार्क के भ्रमण के लिये तय था। पर एक ही दिन में बर्दिया हो कर लखनऊ तक दस घंटे की वापसी यात्रा दल के कुछ सदस्यों के खराब स्वास्थ्य और छात्रों की परीक्षा के चलते ये संभव न हो सका। भारतीय दल के एक दो सदस्य भ्रमण का ये सुअवसर हाथ से जाने के कारण खिन्न भी हुए। पर ऐसा होता है कभी कभी किन्हीं परिस्थितियों के चलते मन का नहीं हो पाता। निर्मल जल की स्वामिनी सोना उगलने वाली करनाली रिवर, उस पर बने एशिया के सबसे अनोखे पुल और बर्दिया नेशनल पार्क के वन और उसके निवासी प्राणियों को निहारने का सपना अधूरा ही रह गया।

सोना उगलने वाली करनाली सुन कर चौंकिये मत। उसके किनारे बसी नेपाली जनजातियों की महिलाओं करनाली की रेत से सोना ढूंढने की कला में दक्ष होती हैं। ऐसा करते मैने स्वयं अपनी आंखों से उन्हें देखा। फूस की बल्लियों के सहारे टिकी झोंपड़ियों में बसी बस्ती के निवासियों का प्रेम पगा आतिथ्य सत्कार कुछ वर्ष पहले साक्षात अनुभव किया है। इसका अनुभव भारतीय दल को भी कराना चाहता था। साहित्यकार वहां जाते तो कलम चला कर भारतीय सैलानियों के मन में नेपाल दर्शन की अलख जगाते। पर समय के अभाव के आगे इस इरादे ने दम तोड़ दिया।

बर्दिया जाने का स्वर्णिम अवसर हाथ से गया तो क्या हुआ पर किसी उनींदी सुंदरी सी नेपालगंज नगरी के बागेश्वरी धाम के दर्शन का जिक्र न हो तो ये रेग्मी जी की साहित्यिक पर्यटन की परिकल्पना के साथ अन्याय होगा। प्राचीन काल से यह मंदिर भक्ति और आस्था का केन्द्र रहा है। इस मंदिर के संबंध में अनेक जनश्रुतियां और किंवदंतियां प्रचलित हैं। वर्तमान समय में 24 वीं पीढ़ी के महंत यहां पीठासीन हैं। मंदिर की ऐतिहासिकता के बारे में खुद भवानी भक्त सनत रेग्मी ज्यू बताते हैं कि ईसा की चौदहवीं शताब्दी के आसपास नेपाली जिला जुम्ला से नाथ सम्प्रदाय के गुरु, शिष्य भारतीय तीर्थों की यात्रा के लिये यहां ठहरे थे। गुरु, शिष्य मंदिर के सामने पोखर से मिट्टी निकाल कर दीवार बनाते पर रात में वो गिर जाती। सातवें दिन देवी ने सपने में गुरु से कहा एक बलि के बिना मंदिर नहीं बनेगा। गुरु योगी सिद्धनाथ ने शिष्य से कहा तुम गड्ढा खोदो मैं उसमें बैठ जाऊंगा तो उसे मिट्टी से पाट देना। इसे नेपाली भाषा में आज भी जिउंदो समाधि कहते हैं। मंदिर के दक्षिण कोने पर आज ये समाधि षट्कोण के रूप में है। यहाँ आने वाले श्रद्धालु इस पर भी श्रद्धा माथा टेकते हैं। मंदिर के सामने ही तालाब में खड़ेश्वर मूंछ महादेव की आदमकद प्रतिमा विद्यमान है।

नेपालगंज का यह अध्यात्मिक आकर्षण केन्द्र दरअसल कभी बलरामपुर स्टेट की जागीर का हिस्सा हुआ करता था। इसीलिये नेपाल के लोग इसे नया मुलुक भी कहते हैं। अंग्रेजों ने बांके, बर्दिया, कंचनपुर व कैलाली नगर नेपाल के राणा शासकों को सौंप दिया था। बताते हैं कि कोई 800 बरस पहले बलरामपुर स्टेट के राजा दिग्विजय सिंह भ्रमण पर यहां आये थे तो उन्होंने छप्पर के नीचे इस माता के मंदिर को देखा था। तभी उन्होंने बांके जिले की जानकी गांव सभा में करमोहना गांव की 87 बीघा जमीन मंदिर के नाम कर दी थी जो आज भी बांके जिले के भूलेख विभाग में दर्ज है। नेपाल सरकार ने बलि के लिये 3996 रुपये भी प्रति नवरात्र तय कर रखा है। स्वामी नरहरि दास ने अपने ग्रंथ देवभूमि भारत और आध्यात्मिक नेपाल में लिखा है कि बागेश्वरी देवी को वाणी की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती का स्वरूप माना जाता है। इस दृष्टि से देखा जाये तो यह स्थल सरस्वती के साधकों के लिये तो पूज्य हुआ न। किंवदंती है कि यहां सती की जिह्वा गिरी थी।

हमारे वयोवृद्ध मार्गदर्शक रेग्मी जी ने भी यह स्वीकार किया और आगे से ऐसी व्यवस्था करेंगे जिससे भ्रमण के लिये बीच में ही ऐसा समय निर्धारित किया जायेगा ताकि वहां से वापसी पर पहले पड़ाव पर ही विश्राम हो सके। ऐसे में भारतीय कवि डा. हरिवंशराय बच्चन के अपने पुत्र अमिताभ से कहे उन शब्दों से खुद को दिलासा दे लेते हैं कि मन का हो तो अच्छा, मन का न हो तो और भी अच्छा। नेपालगंज के साफ सुथरे और वहां के हिसाब से बेहतर मेहमानखाने में प्रवास के दौरान पेशेवर हॉस्पिटेलिटी का अभाव तो दिखा पर एक मूक बधिर वेटर युवराज का प्रेम और सेवा भाव कभी भुलाये नहीं भूलेगा।

तीसरे दिन मारुति नंदन प्रांगण में राष्ट्रगान के बाद भारतीय दल वापसी की राह पर था। हमारे मेजबान नेपालगंज उपमहानगरपालिका के कार्यकारी सदस्य बसंत कनौजिया, अजय टंडन, अरुण सिंह और जोशी जी ने फिर आने और बुलाने के आग्रह के साथ नेपाल और भारत बार्डर पार कराया। साथ ही भारत सीमा पर एसएसबी की सख्ती से दोनों के तरफ के लोगों की दैनंदिन आवाजाही में परेशानियों का जिक्र भी किया। सख्ती होनी चाहिये लेकिन रोजमर्रा खरीद फरोख्त से जुड़े लोगों का रिकॉर्ड रखा जा सकता है।

वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा को मानते हुए दो पड़ोसी देशों की अनादि काल से चली आ रही मैत्री की राह में एक छोटा सा दिया मैने भी जलाया है। ज्ञान और शांति का सन्देश लेकर गया था, यह सन्देश जहाँ तक पहुंचे....


Published: 13-04-2023

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