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कांग्रेस की सियासी विरासत : राहुल को संगठन, प्रियंका को देश

बापू की समाधि राजघाट पर विरोध की संकल्प सत्याग्रह सभा में मां सोनिया गांधी नहीं बोली, राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे नहीं बोले, बोलीं प्रियंका गांधी और खूब बोलीं। प्रियंका के बोल में दादी की आक्रामक छवि साफ नजर आयी।

राहुल को संगठन, प्रियंका को देश
राहुल को संगठन, प्रियंका को देश

कांग्रेस के सर्वशक्तिमान गांधी परिवार के आंगन में अब यह लाइन स्पष्ट होने लगी है कि राहुल गांधी संगठन संभालें और प्रियंका गांधी देश। राहुल गांधी के पार्लियामेंट से बाहर हो जाने के एक दिन बाद दिल्ली में बापू की समाधि राजघाट पर विरोध की संकल्प सत्याग्रह सभा में मां सोनिया गांधी नहीं बोली, राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे नहीं बोले, बोलीं प्रियंका गांधी और खूब बोलीं। प्रियंका के बोल में दादी की आक्रामक छवि साफ नजर आयी। ये भी कि लगा कि उनमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जैसी जनता से संवाद की कला विकसित हो रही है। आज नही तो कल उसका निखरना लाजमी है। आखिर राजकाज की नर्सरी की उपज तो वो हैं ही।

जहां तक प्रियंका गाँधी वाड्रा को कांग्रेस के प्रधानमंत्री मैटीरियल के रूप में पेश किये जाने का सवाल है तो अब यह कोई छिपी हुई बात नहीं रह गयी कि कांग्रेस के अंदर दो लाॅबियां काम कर रही हैं। कुछ राहुल की गुड बुक में है तो कुछ ने प्रियंका के खेमे में आसरा तलाश लिया है। भाजपा परिवारवाद को मुद्दा भले बनाये पर सच ये भी है कि देश का मतदाता इसे ख़ुशी ख़ुशी स्वीकार करता आया है। इसलिये कांग्रेस का अस्तित्व इसी परिवार पर टिका है। बेशक फिलहाल कांग्रेस देश में बहुत सिमटी हुई है पर पैन इंडिया पार्टी की हैसियत से अगर भाजपा का कोई मुकाबला कर सकता है तो वो काग्रेस ही है.

कांग्रेस राहुल और प्रियंका दोनों का मास्टर कार्ड खेल चुकी है। राहुल गांधी को पहले जनता के बीच लाया गया। अपनी अब तक की राजनीतिक यात्रा में उन्होंने आक्रामकता के दर्शन तो कराये हैं और अब भारत जोड़ो यात्रा करके जनता से संवाद के हुनर में इजाफा किया है। पर अभी संगठन में नीचे के लेवल पर वो मानव संसाधन उनके पास नहीं है जो उन्हें चुनावी कामयाबी दिला पाये। जब तक कांग्रेस समर्पित युवा कैडर नहीं खड़ा कर पाता तब तक राहुल गांधी की सफलता में संदेह बना ही रहेगा। इसके साथ ही राहुल को मोदी की टक्कर में आने के लिये अपना विजन और देश को आगे ले जाने का रोडमैप भी सामने रखना होगा।
राहुल गांधी के काफी बाद प्रियंका गांधी को यूपी के रास्ते से राजनीति में आलाकमान सोनिया गांधी ने मैदान में उतारा। प्रियंका को शुरुआती कामयाबी तो नहीं मिली पर महिला होने के नाते अपनी अलग शैली में जनता से संवाद की कला सीखती गयीं। जब राहुल ने प्रियंका को यूपी की जिम्मेदारी सौंपी उसके बाद से प्रियंका ने धीरे धीरे अपने मन की टीम बनाना शुरू कर दिया। यूपी सीसी में तमाम पुराने कांग्रेसियों को बाहर करके संगठन में अपने समर्थकों को बिठाया। फिर हिमाचल प्रदेश में चुनावी सफलता उनकेे खाते में जुड़ गयी।

आचार्य प्रमोद कृष्णम जैसे कांग्रेस नेता तो टी वी चैनलों पर यह कहते हुए पाये जा चुके हैं कि प्रियंका गांधी को पी एम पद के लिये आगे बढ़ाया जाना चाहिये। भले ही आज प्रियंका वाड्रा गांधी कांग्रेस में किसी भी पद पर नहीं हैं और पार्टी की महत्वपूर्ण बैठकों में पीछे की कतार में बैठी दिखायी देती हों पर राजघाट पर शेरनी की तरह भाई के पक्ष में ललकारने के अंदाज ने पार्टी में उनके भक्तों के दिल बागबाग कर दिये होंगे।
परिवादवाद जिसे कमजोर मान कर भाजपा लगातार कांग्रेस पर हमलावर रही है उसे ही यह कह कर प्रियंका ने अपनी मजबूती साबित कर दिया कि उनके परिवार ने अपने खून से देश में लोकतंत्र को सींचा है। अगर कांग्रेस परिवारवादी है तो भगवान राम क्या थे। भगवान राम ने अपने परिवार और देश के लिये कर्तव्य को पूरा किया। और भगवान् राम का नाम ले कर प्रकारांतर से कांग्रेस पर लगे हिंदू विरोधी ठप्पे को भी हटाने की मंशा जाहिर कर दी। प्रधानमंत्री कायर हैं कह कर अपनी आक्रामकता का एहसास भी करा दिया।

ऐसे में दक्षिण से राहुल और उत्तर से प्रियंका का डबल अटैक 24 और उससे पहले 23 में राज्यों के चुनाव में मोदी और भाजपा को चुनौती दे सकता है। ऐसा कांग्रेस के थिंक टैंक का मानना है। भाई और बहन के बीच सियासी विरासत के बंटवारे का यह फार्मूला कांग्रेस के लिये जीवनी साबित हो सकता है। पहले के राजे रजवाड़ों में उत्तराधिकार को लेकर भाई भाई, भाई बहन के बीच प्रतिस्पर्धा कोई नई बात नहीं रही है। ऐसी नौबत न आये इस दृष्टि से भी राहुल और प्रियंका के बीच संगठन और सरकार की सीमा रेखा खींचना कांग्रेस की राजमाता हो सकता है मुआफिक मान रहीं हों।

पर ये तय है कि गांधी परिवार का कोई सदस्य ही कांग्रेस को उबार सकता है वो चाहे 23, 24 हो या 29 हो। राहुल गांधी की संसद से अयोग्यता की घटना ने राहुल और प्रियंका को कांग्रेस का लीडर तो बना दिया है। आजादी के बाद कांग्रेस भारतीय राजनीति में ऐसे वटवृक्ष के रूप में रही है जिसके 67, 77, 89 या 2014 में पत्ते तो झड़ते रहे हैं लेकिन नेहरू गांधी परिवार के सहारे वो फिर फिर हरा होता रहा है।

 


Published: 26-03-2023

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