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यू पी में विपक्ष पर : फिर सीबीआई और ईडी का शिकंजा

सीबीआई शिवपाल से पूछताछ के लिए सरकार से मंजूरी मांग चुकी है. साथ ही शिवपाल के करीबी माने जाने वाले सिंचाई विभाग के दो अफसरों को भी लपेटे में लिया गया है. हालांकि साल 2017 में भाजपा की योगी सरकार सत्ता सम्हालते ही गोमती रीवर फ्रंट की न्यायिक जांच करा चुकी है.

फिर सीबीआई और ईडी का शिकंजा
फिर सीबीआई और ईडी का शिकंजा

केन्द्र एवं यूपी की भाजपा सरकार ने एक बार फिर विरोधी दलों के नेताओं का मनोबल तोड़ने के लिए सीबीआई और ईडी रुपी चाबुक का इस्तेमाल किया है. जब तक शिवपाल भाजपा के इशारे पर नाच रहे थे. अपने भतीजे को सियासी मात देने के लिए भाजपा के साथ मिलकर रणनीति गढ़ते थे तब तक उनके काफी प्रिय रहे. पर अब ऐसा करके भाजपा सरकार ने यह साबित कर दिया है कि भाजपा के खिलाफ मुंह खोलने वाले हर उस शख्स को कठघरे में खड़ा करने में सरकार किसी प्रकार का गुरेज नही करेगी. अभी तक सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले प्रसपा मुखिया शिवपाल सिंह यादव को भाजपा सरकार ने शिवपाल सिंह को एक बड़ा बंगला आबंटित कर. उन्हे जेड श्रेणी की सुरक्षा मुहैया करा दी. 

सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद मैनपुरी में लोकसभा सीट पर उप चुनाव हो रहे हैं. पांच दिसम्बर को मैनपुरी में मतदान होना है. यह सीट समूचे यादव परिवार की प्रतिष्ठा से जुड़ी है. पहले भी दो लेखो में मैनपुरी से जुड़े हालात का जिक्र किया जा चुका है जिसके चलते मुलायम के सम्मान को महफूज रखने के लिए चाचा शिवपाल सिंह यादव और भतीजे सपा सुप्रीमो अखिलेष यादव को एक मंच पर एक साथ आने को मजबूर होना ही पड़ा. यही नही इस चुनाव में शिवपाल की सक्रियता ने भाजपा की नींद उड़ा दी है. भाजपा को यह महसूस हुआ कि यिावपाल सिंह यादव आज भी मैनपुरी जैसे इलाके में काफी मजबूत और लोकप्रिय है.

शिवपाल और अखिलेश यादव के बीच खत्म हुई दूरी ने भाजपा की चिंता को जहां बढ़ा दिया वहीँ आगे की सियासत में सपा के अधिक मजबूत होने की सम्भावना को बल मिला है. दूसरी तरफ भगवा खेमे को चाचा भतीजे का यह मिलाप रास नही आया. चाचा-भतीजे के बीच बढ़ी दूरी से यादव मतदाताओं में विभाजन होने से भाजपा को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से फायदा मिलता था. दोनो के एक होने से उम्मीद जाहिर की जा रही है कि यादव मतदाता एक बार फिर एकजुट होकर समाजवादी पार्टी के साथ खड़ा हो सकता है.
इन्हीं आशंकाओं के बीच भाजपा की योगी और केन्द्र की मोदी सरकार ने शिवपाल यादव को घेरने की रणनीति के तहत गोमती रीवर फ्रंट मामले का पिटारा तो खोला ही साथ ही शिवपाल यादव को दी गयी जेड श्रेणी की सुरक्षा को घटाकर वी श्रेणी की सुरक्षा में समेट दिया है. इस बाबत सुरक्षा समिति की बैठक में समीक्षा के दौरान सुरक्षा में कटौती किए जाने की संस्तुति को सरकार ने आधार बनाया है.

यही नही भतीजे का हाथ थामते ही शिवपाल पर सरकार की भृकुटी तिरछी हो गयी. सीबीआई शिवपाल से पूछताछ के लिए सरकार से मंजूरी मांग चुकी है. साथ ही शिवपाल के करीबी माने जाने वाले सिंचाई विभाग के दो अफसरों को भी लपेटे में लिया गया है. हालांकि साल 2017 में भाजपा की योगी सरकार सत्ता सम्हालते ही गोमती रीवर फ्रंट की न्यायिक जांच करा चुकी है. सबसे बड़ा सवाल यह है कि न्यायिक जांच में क्या शिवपाल सिंह यादव दोषी पाये गये थे अथवा नहीं. यदि दोषी पाये गये थे अथवा उनकी भूमिका संदिग्ध थी तो अब तक सरकार मौन क्यो बैठी रही. सरकार के इस फैसले को लेकर कहा है कि रिवर फ्रंट का मामला पूरी कैबिनेट का फैसला था. अगर ईडी और सीबीआई कैबिनेट का फैसला नही मानती है तो हमारी पूर्ववर्ती पूरी कैबिनेट सीबीआई और ईडी का सामना करने को तैयार है.

सब से बड़ा सवाल यह है कि सियासत में जिस प्रकार सरकारी तंत्र के द्वारा विरोधी दलों के नेताओं के मनोबल को तोड़ने और उन्हे प्रताड़ित करने की परम्परा आरम्भ की गयी है. उसकी श्रंखला अब आगे थमने को तैयार नहीं होगी. जब कभी भी सरकार बदलेगी तो आज के सत्ताधारी नेताओं को भी ऐसी दुष्वारियों का सामना करना पड़ सकता है. सियासत में वैचारिक मतभेद होना एक स्वस्थ परम्परा मानी जाती है लेकिन सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच मनभेद का होना कोई अच्छी परम्परा नही मानी जाती है. सियासी संस्कृति का स्वरूप अब बदसूरत हो चला है जो हमारी भारतीय सियासत को प्रदूषित करने का काम कर रहा है. फिलहाल जो भी भाजपा के इशारे पर चले वह पाक साफ जो विरोध करे वह भ्रष्टाचार की छांव में.

 

 

 


Published: 02-12-2022

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