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साहेब की विरासत : कौन थामेगा

हत्या के अपराध में तिहाड़ जेल में उम्र कैद की सजा काट रहे बाहुबली और लालू यादव के सियासी चेले कहे जाने वाले पूर्व सांसद मुहम्मद शहाबुद्दीन ने अपने ५४ जन्मदिन के ९ दिन पहले एक मई को दिल्ली के एक अस्पताल में कोविड से दम तोड़ दिया. जैसे ही ये खबर आई बिहार में बड़ी ख़ामोशी से उन मुसलमानों के दिल जीतने की होड़ शुरू हो गयी जो इस बाहुबली को अपना रहनुमा मानते थे.

कौन थामेगा
कौन थामेगा

हत्या के अपराध में तिहाड़ जेल में उम्र कैद की सजा काट रहे बाहुबली और लालू यादव के सियासी चेले कहे जाने वाले पूर्व सांसद मुहम्मद शहाबुद्दीन ने अपने ५४ जन्मदिन के ९ दिन पहले एक मई को दिल्ली के एक अस्पताल में कोविड से दम तोड़ दिया. जैसे ही ये खबर आई बिहार में बड़ी ख़ामोशी से उन मुसलमानों के दिल जीतने की होड़ शुरू हो गयी जो इस बाहुबली को अपना रहनुमा मानते थे.

हालाँकि की कई अन्य राज्यों की तरह बिहार में इस बीमारी की दूसरी क्रूर लहर पर लगाम लगाने के लिए पूर्ण लॉक डाउन है. बिहार के अलग अलग राजनितिक दलों के नेता शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा साहिब को अपना शोक प्रकट करने के लिए सिवान के प्रतापपुर गाँव की और दौड़ पड़े. ओसामा भी अपने पिता की विरासत सभालने के लिए तैयार है. जनाधिकार पार्टी के प्रमुख राजेश रंजन उर्फ़ पप्पू यादव संवेदना प्रकट करने के लिए सिवान पहुचे तो एक दिन बाद राजद विधायक रीत लाल यादव भी पहुच गये. रीत लाल ने ओसामा के साथ ३० मिनट की चर्चा की जिसे राजनैतिक परिवेक्षक तेजस्वी यादव की डैमेज कण्ट्रोल की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है.

शहाबुद्दीन का परिवार उनके जीवन के अंतिम दिनों में उनके लिए कुछ खास प्रयास नही करने की वजह से तेजस्वी यादव और लालू यादव से नाराज रहे. पप्पू यादव की प्रतापपुर यात्रा को भी साहेब के परिवार की राजद के साथ अनबन का फायदा उठाने के रूप में देखा गया है. राजद से बुरी तरह चिढ़े पप्पू यादव कथित तौर पर शहाबुद्दीन के समर्थको को राजद से तोड़ने का जी तोड़ प्रयास कर रहे हैं. उन्होंने शहाबुद्दीन को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में बताया जो लालू यादव के प्रति पूरी तरह वफादार रहे और संकट की घडी में भी लालू के पीछे खड़े रहे. जब तेजस्वी माता पिता की गोद में खेलने वाले बच्चे थे पप्पू यादव जानते है कि मुसलमानों में शहाबुद्दीन के लिए जबर्दस्त सहानुभूति है. इसलिए उनके पास से वह एक समानांतर मुस्लिम यादव धुरी बनाने की कोशिश कर रहे हैं.

संयोग से ५ बार लोकसभा सांसद रहे पप्पू पहले लालू यादव के हुआ करते थे. लेकिन २०१४ में जब उन्होंने लालू की विरासत का दावा करने की कोशिश की तो पार्टी ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया था. रीतलाल न तो शहाबुद्दीन के पुराने साथी रहे हैं और न हीं उनके समकालीन. फिर भी डॉन के परिवार से संवेदना प्रकट कर के उन्हें जेल भेजे जाने की घटना को पप्पू यादव जैसे राजनीतिक विरोधी के शहाबुद्दीन के परिवार को राजद से दूर करने के प्रयासों को बेअसर करने की तेजस्वी यादव की कोशिश के रूप में देख रहे हैं. शहाबुद्दीन अपने पीछे उत्तर चड़ाव वाली विरासत छोड़ गये हैं.

उत्कर्ष के दिनों में वह सिवान के निर्विवाद साहेब थे. यह भी एक विडंबना है कि यही जिला भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म स्थान है. लालू यादव और राबड़ी देवी के १५ साल के शाशन काल में इस डॉन का सिवान में आतंक था और उन्होंने यहाँ एक बेताज बादशाह की तरह राज किया. शहाबुद्दीन बिहार की राजनीति में अंदर तक पैठ बना चुके उन अपराधियों का प्रतीक थे जिनका बिहार की राजनीति पर सिक्का चलता था. शहाबुद्दीन पर शिकंजा कसना २००५ से शुरू हुआ जब नितीश कुमार की सरकार ने सत्ता सम्भाली.

नितीश ने अपराधी छवि वाले नेताओं के खिलाफ मुकदमों की त्वरित सुनवाई की जिसके कारण शहाबुद्दीन को दोषी ठहराया गया और चुनाव लड़ने वंचित कर दिया. विडंबना है कि १ मई को शहाबुद्दीन की मौत हुई उसी दिन उनके सियासी गुरू लालू यादव को दिल्ली के एम्स से छुट्टी मिली. उन्हें तीन साल से ज्यादा की न्यायिक हिरासत के बाद अप्रैल में जमानत मिली थी. कहा जाता है कि शहाबुद्दीन के अंतिम दिनों में उनके बेटे ओसामा अपने पिता के लिए बेहतर उपचार सुनिश्चित करने के लिए अकेला संघर्ष कर रहे थे लेकिन शहाबुद्दीन की मौत के बाद राजनेताओ में उनको लेकर सहानभूति प्रकट करने की होड़ मची है.


Published: 24-05-2021

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