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हाथ छुडाते सिद्धू : मुख्यमंत्री के लिए राजनीतिक संकट

पंजाब विधानसभा चुनाव में एक साल से भी कम का समय बचा है ऐसे में कप्तान अमरिंदर सिंह अकेले पड़ते जा रहे हैं. नवजोत सिंह सिद्धू किसी भी समय अपने पुराने घर भाजपा में वापसी कर सकते हैं.

मुख्यमंत्री के लिए राजनीतिक संकट
मुख्यमंत्री के लिए राजनीतिक संकट

पंजाब विधानसभा चुनाव में एक साल से भी कम का समय बचा है ऐसे में कप्तान अमरिंदर सिंह अकेले पड़ते जा रहे हैं. नवजोत सिंह सिद्धू किसी भी समय अपने पुराने घर भाजपा में वापसी कर सकते हैं. १० अप्रैल को पंजाब एवं हरयाणा हाई कोर्ट ने २०१५ में गुरु ग्रन्थ साहेब को अपवित्र किए जाने के मामले पर गठित एस आई टी की रिपोर्ट को ख़ारिज कर दिया.

राज्य में बहुतों की नजर में न्याय प्रक्रिया के उपहास के तौर पर देखे जा रहे इस मुद्दे ने मुख्यमंत्री के लिए एक राजनीतिक संकट खड़ा कर दिया है. उनके आलोचकों में अब उनके दो विश्वासपात्र भी शामिल हो गये हैं. प्रदेश कांग्रेस प्रमुख सुनील जाखड़ और सहकारिता मंत्री सुखजिंदर रंधावा. इन दोनों ने २६ अप्रैल को अपने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया. इन दोनों ने मामले को ठीक से सम्भाल न पाने के लिए सार्वजनकि बयान दे कर सरकार की आलोचना की थी जिसके बाद अमरिंदर सिंह ने दोनों को फटकार लगाईं.

इस बीच क्रिकेटर से नेता बने उनके पुराने आलोचक और कभी कप्तान अमरिंदर सिंह को अपने पिता जैसा बताने वाले कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू, राज्यसभा सांसद प्रताप सिंह बाजवा और लुधियाना से सांसद रवनीत बिट्टू उन पर निशाना साधते रहे. ये सभी ताकतवर नेता है. जिन्हें कप्तान अमरिंदर सिंह नजरंदाज नही कर सकते. युवा मतदाताओ में सिद्धू का अच्छा प्रभाव है. इसलिए भाजपा ने उनसे करीबियां बढ़ानी शुरू कर दी लेकिन सिद्धू मुख्यमंत्री से कम का पद नही चाहते हैं. अकाली दल से नाता टूटने के बाद भाजपा सिद्धू के साथ यह बड़ा सौदा कर सकती है. बाजवा पीसीसी के पूर्व प्रमुख हैं और कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं. बिट्टू पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के बेटे हैं जिनकी हत्या कर दी गयी थी. २७ अप्रैल को अमरिंदर सिंह ने सिद्धू के आरोपों पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए उन पर आरोप लगाया कि वह एक बार फिर कांग्रेस पार्टी से निकलने के लिए भूमिका तैयार कर रहे हैं.

इस पूरे मामले में पार्टी आलाकमान की चुप्पी मुख्यमंत्री के लिए चिंता की बात हो सकती है. पार्टी नेतृत्व ने उनकी शिकायतों की लगातार अनदेखी की है, खासकर बाजवा के खिलाफ. उससे पार्टी की प्रदेश इकाई पर अमरिंदर की पकड़ कमजोर हुई है. इस बीच जाखड़ ने अपने बयान में अति आत्मविश्वास और राजनैतिक जिम्मेदारी की कमी को एस आई टी की विफलता का जिम्मेदार बताया है. २०१५ के अक्टूबर नवम्बर में गुरु ग्रन्थ साहेब को अपवित्र किये जाने की घटना की सबसे पहली खबर फरीदकोट जिले के बरकारी गाव के गुरूद्वारे से आई थी. इसके बाद पास के फिरोजपुर अमृतसर और लुधियाना तरनतारन जिलो में इसी तरह की १२२ घटनाओ का पता चला था.

सिखों के लिए यह बहुत संवेदनशील मुद्दा है. खासकर कोटकपूरा में प्रदर्शनकारियों पर पुलिस की गोलाबारी के बाद जिसमे २ लोगो की मौत हो गयी थी. सिखो के एक वर्ग का मानना है कि इन घटनाओ के पीछे जेल में बंद सिरसा स्थित डेरा सच्चा सौदा सम्प्रदाय के प्रमुख गुरमीत राम रहीम और उनके दलित अनुयाइयो का हाथ हो सकता है. पवित्र पुस्तक को अपवित्र किए जाने की रिपोर्ट तब आई जब अकाल तख़्त जत्थेदार ने २००७ की उस घटना के लिए विवादस्पद नेता की माफ़ी को स्वीकार कर लिया. जिसमे उसने कथित रूप से गुरु गोविन्द सिंह जैसे वस्त्रो का पहनावा पहना था. उस फैसले के बाद डेरा प्रमुख के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन हुए थे और पंथिक वोटरों के बीच पनपे गुस्से ने तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और उनके बेटे सुखविंदर बादल को धूल चटा दी थी. २०१७ के विधान सभा चुनाव में अमरिंदर ने बादल परिवार को दोषी कह कर उनके और गोली चलाने वाले पुलिस वालों के खिलाफ केस चलाने की कसम खाई थी लेकिन हाई कोर्ट में एस आई टी की रिपोर्ट खारिज हो जाने के बाद उनकी पार्टी के लोग कप्तान के पीछे पड़ गये है. सत्ता में तुरंत लौटने के बाद अमरिंदर ने हाई कोर्ट अवकाश प्राप्त जज रणजीत सिंह की अध्यक्षता में जांच समिति बना दी थी. जज ने पुलिस की गोलीबारी को अनुचित बताया.

हाई कोर्ट के फैसले के बाद शिरोमणि अकाली दल दावा कर रहा है कि उनका पक्ष सही था लेकिन आम आदमी पार्टी ( सुखदेव ढईन्धसा) के नेतृत्व वाली शिरोमणि अकाली दल डेमोक्रेटिक और भाजपा जैसी दूसरी विपक्षी पार्टियों के नेता अमरिंदर सिंह पर राजनैतिक खेल खेलने और दोषियों को छोड़ने का आरोप लगा रहे हैं.

गुरु ग्रन्थ साहेब से बेअदबी के भावनात्मक मुद्दे के कारण कांग्रेस और आप ने पथिंक वोटरों का एक हिस्सा अपनी और खीच लिया था. २०१९ के आम चुनाव में भी अमरिंदर ने इस प्रभावशाली वोट बैंक का समर्थन किया था. बेअदबी का मुद्दा फिर कप्तान की परेशानी का सबब है. अब विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं. विरोधियो से उनके सम्बन्ध सुधरने की उनकी कोशिशॉ को भी इससे नुकसान हो सकता है.


Published: 10-05-2021

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