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उम्मीदों का ज्वार भाटा : बंगाल भाजपा में दिखने लगा

बंगाल के चुनाव नतीजे आने से पहले से ही भाजपा में उम्मीदों का ज्वार भाटा दिखाई पड़ने लगा है. मूल भाजपाई और बाहर से आये नए भाजपाइयों के बीच महत्वाकांक्षाओं का टकराव सामने आने लगा है. उम्मीदवारों के चयन पर पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच टकराव की लगातार रिपोर्ट मिलीं हैं. भाजपा कार्यकर्ताओं ने 14 से 16 मार्च के बीच, हावड़ा, हुगली और दक्षिण दिनाजपुर जिलों के कुछ हिस्सों में राजमार्गों को अवरूद्ध किया और पार्टी कार्यालयों में तोड़फोड़ की थी। अनुशासित पार्टी होने का दावा करने वाली भाजपा के लिए ये घटनाएं काफी शर्मनाक थी क्योंकि वह बंगाल को राजनैतिक गुंडागर्दी से छुटकारा दिलाने का वादा करती है।

बंगाल भाजपा में दिखने लगा
बंगाल भाजपा में दिखने लगा

भाजपा के मुख्य रणनीतिकार तथा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के सिलसिले में 15 मार्च को पार्टी के विभिन्न संगठन कार्यों के प्रभारी 25 नेताओं से तंज के अंदाज में कहा था, पाॅलिटिकल टूरिज्म बहुत अच्छा चल रहा है। ये नेता पिछले तीन महीनों से मिशन एवार बांग्ला की हवा बनाने के लिए राज्य में डेरा डाले हुए है। दरअसल, इन नेताओं पर ताना मारने से पहले उसी दिन शाह को झाड़ग्राम जिले में रैली पर्याप्त भीड़ न जुटने से ऐन मौके पर रद्द करनी पड़ी थी।

शाह की फटकार ने पार्टी नेताओं की नींद उड़ा दी। शाह ने असम के गुवाहटी में चुनाव प्रचार करके दिल्ली लौटते हुए बंगाल में कुछ समय ठहरने का फैसला किया था। उन्हें पश्चिम बंगाल में भाजपा उम्मीदवारों के चयन पर पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच टकराव की लगातार रिपोर्ट मिल रही थी। भाजपा कार्यकर्ताओं ने 14 से 16 मार्च के बीच, हावड़ा, हुगली और दक्षिण दिनाजपुर जिलों के कुछ हिस्सों में राजमार्गों को अवरूद्ध किया और पार्टी कार्यालयों में तोड़फोड़ की थी। कोलकाता पार्टी मुख्यालय में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुकुल राॅय, राष्ट्रीय संयुक्त महासचिव शिवप्रकाश और बैरकपुर के सांसद अर्जुन सिंह समेत कई नेताओं का घेराव किया गया। अनुशासित पार्टी होने का दावा करने वाली भाजपा के लिए ये घटनाएं काफी शर्मनाक थी क्योंकि वह बंगाल को राजनैतिक गंुडागर्दी से छुटकारा दिलाने का वादा करती है। कहते है, उस रात कोलकाता में शाह ने बंगाल चुनाव की तैयारी में लिए गए कई फैसलों पर सवाल उठाए।

उन्होंने राष्ट्रीय अध्यक्ष जे0 पी0 नड्डा से पूछा कि पिछले अक्तूबर महीने में अनुभवी आरएसएस कार्यकर्ता सुब्रत चटोपाध्याय की जगह अपेक्षाकृत अनुभवहीन अमिताभ चक्रवर्ती को महासचिव क्यों बनाया गया। आरएसएस प्रचारक और एबीवीपी के नेता चक्रवर्ती को संयुक्त महासचिव से पदोन्नत किया गया था। चटोपाध्याय को हटाया जाना भाजपा बंगाल इकाई के मुखिया दिलीप घोष के लिए तगड़ा झटका था। पिछले चार साल से दोनों मिलकर काम कर रहे थे।और दोनों ने राज्य में पार्टी की मजबूती में अहम योगदान दिया था। 2016 के विधानसभा चुनावों में 10 प्रतिशत वोट और तीन सीटों से 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को 40 प्रतिशत से अधिक वोेट और 18 सीटें हासिल हुई। नड्डा और राष्ट्रीय महासचिव तथा बंगाल के केंद्रीय पर्यवेक्षक कैलाश विजयवर्गीय ने चक्रवर्ती के पक्ष में काफी दलीलें देने की कोशिश की, लेकिन शाह खुश नही हुए, उन्होंने दो-टूक कहा, वह क्या करेगा?

चटोउपाध्याय की विदाई से कई भैंहिं तन गई थी, जो पार्टी में अपने संगठन कौशल के लिए जाने जाते है, उन्होंने पश्चिम बंगाल में 1200 मंडल, 11,000 शक्ति केंद्र और भाजपा की 78,000 बूथ समितियों में से 66,000 बूथ समितियां स्थापित की है। प्रदेश भाजपा के एक वरिष्ठ नेता कहते है। उनकी रणनीति आरएसएस के सामाजिक कार्यों की मदद से गांव-गंाव में प्रवेश करना था, उन्होंने न केवल जमीनी स्तर के नेताओं को तैयार किया बल्कि तृणमूल कांग्रेस के पक्के विरोधियों को अपनी ओर खींचने का काम किया, जबकि अब निहितस्वार्थी नेताओं की आमद हो रही है।

दिलीप घोष के दरकिनार होने से उम्मीदवारों के चयन से लेकर प्रचार अभियान की योजना और केंद्रीय नेताओं को ब्रीफिंग तक में विजयवर्गीय और राॅय की ही चलने लगी। बंगाल के एक अन्य वरिष्ठ भाजपा नेता कहते है कैंडिडेट की सूची तैयार करते समय दिलीप दा को विश्वास में नही लिया गया था. इसलिए केंद्रीय नेताओं ने जब उनसे संपर्क किया तो उन्होंने अपनी बात रखी, वे चटोपाध्याय के डिमोशन के लिए राॅय को दोषी ठहराते है। वे कहते है कि सुब्रत चटोपाध्याय ने यह आश्वस्त किया था कि भाजपा के दरवाजे हर किसी के लिए खुले नही थे। राॅय उनसे इत्तेफाक नही रखते थे और उन्होंने केंद्रीय नेताआंे से कहा था कि वे ऐसे कट्टर आरएसएस नेता के साथ स्वतंत्र रूप से काम नही कर पाएंगे।

अन्य दलों, खासकर टीएमसी से आए नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल करने के मामले में भाजपा ने जल्दबाजी में गैरजरूरी निर्णय भी लिए है। इनमें कोई सिर्फ जीत की उम्मीद में शामिल किए गए तो कई ऐसे है जिन्हें टीएमसी का टिकट नही मिला। इस तरह के कई संदिग्ध उम्मीदवारों का चयन अब पार्टी के चेहरे की रंगत उड़ा रहा है। अलीपुरद्वार, कूचबिहार, जलपाईगुड़ी, मालदा, मुर्शिदाबाद, नदिया, हावड़ा, हुगली, उत्तर 24 परगना और दक्षिण 24 परगना जिलों में स्थानीय कार्यकर्ताआंे के खुले विद्रोह की खबरें भी सामने आई है। भाजपा के 294 उम्मीदवारों में से 20-25 को पार्टी में विरोध का सामना करना पड़ रहा है। उनमें 13 टीएमसी से आए है।

पार्टी सफाई में कहती है कि उसके सभी उम्मीदवारों को बाहर से कराए गए एक सर्वेक्षण के आधार पर चुना गया। लेकिन पार्टी के अंदर कई लोगों को इस दावे पर संदेह है। मसलन, पूर्वी बर्दवान जिले के कलना से भाजपा का टिकट पाए पूर्व टीएमसी नेता बिस्वजीत कुंडू को लेकर विवाद है। पूर्वी बर्दवान के एक भाजपा कार्यकर्ता ने आरोप लगाया है, कुंडू ने शिक्षक पात्रता परीक्षा के सफल उम्मीदवारों की सूची में धंाधली करने और अपने परिवार के ही सदस्यों को टीचिंग की जांच दिलाने के लिए सार्वजनिक रूप से माफी मांगी है। क्या पार्टी हमें यह भरोसा दिलाना चाहती है कि उस सर्वेक्षण में उन्हंे सबसे उपयुक्त उम्मीदवार के रूप में पहचाना गया है? अगर भाजपा के पक्ष में हवा चल भी रही है तो क्या टीईटी के उम्मीदवार कंडू को वोट देंगे?

नदिया जिले में वैष्णव प्रभाव वाले क्षेत्र नवद्रीप के भाजपा उम्मीदवार सिद्धार्थ नस्कर के खिलाफ भी बगावत है। नस्कर पर उसी इलाके में स्थित उनके आश्रम में किए गए दुर्व्यवहार का आरोप है और कई धार्मिक संगठनों ने खुलकर उनकी उम्मीदवारी पर निराशा व्यक्त की है। इसी तरह हुगली जिले के सिंगूर से पूर्व टीएमसी नेता 89 वर्षीय रवींद्रनाथ भट्टाचार्य को टिकट दिए जाने का स्थानीय भाजपा कार्यकर्ता विरोध कर रहे है। भट्टाचार्य की आयु को देखते हुए उनका चलना फिरना मुश्किल है।

हुगली की सांसद लाॅकेट चटर्जी को चिनसुड़ा से टिकट दिए जाने का भी विरोध हो रहा है। चटर्जी के लोकसभा क्षेत्र के ही एक भाजपा नेता का कहना है जब सुबीर नाग विश्वसनीय विकल्प थे तो लाॅकेट चटर्जी को क्यों उतारा गया? वे आरएसएस के सक्षम नेता है, फिलहाल सुबीर नाग ने खुद को चुनाव कैंपेन से दूर कर लिया है। हुगली जिले की चांपदानी सीट पर भी भाजपा ने एक कारोबारी दिलीप सिंह को मैदान में उतारा है। जिसका चुनाव लड़ने का मुख्य कारण अन्य राजनैतिक दलों की जबरन वसूली को रोकना है।

जाहिर है भाजपा कार्यकर्ताओं में व्याप्त नाराजगी को दूर करने में कैंडिडेट सर्वे का बहाना खास कारगर नही हो रहा है।कोलकाता में एक पार्टी कार्यकर्ता पूछता है, सर्वेक्षण के आधार पर चयन किया गया होता, तो कैसे कांग्रेस के दिग्गज नेता सोमेन मित्रा की पत्नी शिखा मिश्रा को कोलकाता के चौरंगी से उम्मीदवार बनाया गया था जबकि वे भाजपा की सदस्य भी नही थी? शिखा मित्रा ने भाजपा में शामिल होने का आफर ठुकरा दिया था। पार्टी ने अंततः देबब्रत माझी को चौरंगी से अपना उम्मीदवार बनाया।

पश्चिम बंगाल में पार्टी में कलह और असंतोष से परेशान होकर शाह ने विजयवर्गीय, शिवप्रकाश, अरविंद मेनन, बी.एल. संतोष, देवधर और हरीश द्विवेदी से तुरंत इस समस्या की जड़ तक पहुंचने और समाधान करने को कहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपनी तरफ से कोशिश की। टीएमसी से आने वालों को अहमियत देने की वजह से घोष खेमे में छाई उदासी को देखकर मोदी ने राज्य भाजपा प्रमुख की प्रशंसा करने के लिए ही 20 मार्च को खड़गपुर में चुनावी रैली की।
मंच पर घोष की उपस्थिति में ही मोदी ने घोषणा की, मुझे गर्व है कि भाजपा के पास दिलीप घोष जैसा प्रदेश अध्यक्ष है। हमारी जीत तय करने के लिए उनकी एक भी रात चैन से नही गुजरी और वे दीदी की धमकियों से भी नही डरे। उन पर कई जानलेवा हमले किए गए है। मोदी ने यह भी कहा कि घोष की कड़ी मेहनत ने उन्हंे आश्वस्त कर दिया कि भाजपा चुनाव जीतेगी।

घोष ने 2016 में 11 बार के कांग्रेस विधायक ज्ञान सिंह सोहनपाल को हराकर खड़गपुर सीट जीती थी। घोष की शान में प्रधानमंत्री ने कसीदे तब पढ़े है जब भाजपा में कई लोगों ने घोष को मुख्यमंत्री पद की दौड़ से बाहर कर दिया था।
वैसे, भाजपा में ऐसा तबका ठीक ठाक है, जो अपने निर्वाचन क्षेत्रों में स्थानीय नेताओं के स्थान पर दागी या बाहरी उम्मीदवार को अपनाने में असहज हो जाता है। कुछ लोगों को लगता है कि भाजपा ने जानबूझकर घोष को टिकट नही दिया ताकि मुख्यमंत्री पद के नाम पर सस्पेंस बना रहे। इस पद के लिए कई दावेदार है जिसमें बाबुल सुप्रियो, स्वपन दासगुप्ता और पूर्व टीएमसी दिग्गज शुभेंदु अधिकारी के नाम प्रमुख रूप से चर्चा में है। नाम न छापने की शर्त पर भाजपा के एक महासचिव कहते है, पार्टी चाहती थी कि वह चुनाव पीएम मोदी बनाम ममता हो। दिलीप दा को टिकट देने का मतलब उनका मुकाबला सीधे ममता के खिलाफ हो जाता। इसके अलावा जिस समय इससे घोष खेमे के लोग और पार्टी के कुछ दिग्गजों में उत्साह था, तब भी प्रतिद्वंद्वी खेमों को मसाला मिला होगा।

पार्टी के इन शक्ति केंद्रो के बीच केंद्रीय नेतृत्व निश्चित रूप से राॅय का विरोध नही करेगा। वे कुष्णनगर उत्तर से विधानसभा चुनाव लड़ रहे है, जहां से उन्हें चुनाव लड़ने की इच्छा नही थी। राॅय ने कभी चुनाव नही जीता है और इस बार भी स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर खुद को दौड़ से बाहर कर लिया था लेकिन शाह की जिद के सामने उन्हें झुकना पड़ा कि वे चुनाव लडे़। भाजपा के कुछ लोगों का यह भी मानना है कि शाह दरअसल राॅय को एक निर्वाचन क्षेत्र तक सीमित रखने की कोशिश कर रहे है, ताकि उन्हें इधर-उधर भटकने से रोका जा सके और भाजपा के पुराने दिग्गजों में नाराजगी घटाई जा सके। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व का मानना है कि अगर पार्टी क्लीन स्वीप करने में नाकाम रहती है और 148 के साधारण बहुमत से कुछ दूर रह जाती है, तो राॅय का भरपूर इस्तेमाल किया जाएगा।

भाजपा के एक महासचिव कहते है, विधायको का शिकार करने के लिए राॅय की जरूरत होगी, इसलिए यह स्वाभाविक है कि वे अब उनके लाडले है। भाजपा अपने भारी-भरकम कैंपेन और तूफानी पब्लिसिटी के साथ-साथ टीएमसी और फिल्म तथा टीवी बिरादरी से लोगो को लाकर टिकट देने के कई तरह के तर्क देती है। लेकिन, हकीकत यही है कि छह महीने पहले की तुलना में अब उत्साह में कहीं कमी नजर आती है। कोलकाता विश्वविद्यालय में राजनिती विज्ञान के प्रोफेसर शोभनलाल दत्तगुप्ता कहते है, भाजपा की छवि को निश्चित रूप से धक्का पहुंचा है। अगर प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री को यह समस्या निपटाने के लिए आगे आना पड़ता है। तो यह समझना आसान है कि बुनियादी समस्याओं को दूर करने के लिए भाजपा राज्य नेतृत्व में कमी है। दत्तगुप्ता के शब्दों में, सवाल यह है कि क्या भाजपा के इस संकट का उन मतदाताओं पर असर पडे़गा। जो अब तृणमूल को वोट देने का मन बना चुके है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 27 मार्च को बांग्लादेश स्थित मंदिर में पूजा अर्चना कर रहे थे। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के प्रथम चरण के लिए वोटिंग हो रही थी। वोटिंग खत्म होने से पहले मोदी ओरकांडी स्थित मतुआ समुदाय के मंदिर भी पहुंचे और यह जाहिर किया कि मतुआ समुदाय के संस्थापक हरिचंद ठाकुर की भूमि पर आने का इंतजार वे 2015 के अपने बंग्लादेश दौरे के समय से कर रहे थे। इस सिक्के के दूसरे पहलू पर नजर डालें तो बीते मंगलवार को जब दूसरे चरण का चुनाव प्रचार खत्म होने जा रहा था, नंदीग्राम में गृहमंत्री अमित शाह के रोड शो में भाजपा कार्यकर्ता, 'डोले डोले नंदीग्राम , जय श्रीराम जय श्रीराम' और 'कृष्ण-कृष्ण हरे हरे, भाजपा घरे-घरे' का नारा बुलंद कर रहे थे। मुख्यमंत्री मामता बनर्जी, नंदीग्राम सहित पूरे पश्चिम बंगाल में बन रहे धार्मिक ध्रवीकरण की इस लहर को भापने से चूकीं नही और उन्होंने डैमेज कंट्रोल के लिए दूसरे चरण का चुनाव प्रचार खत्म होने के बाद राष्ट्रगान के वक्त व्हील चेयर से उठकर एक पैर पर खड़ी हो गई (उनके दूसरे पैर में प्लास्टर चढ़ा है)।

प्रधानमंत्री की बंग्लादेश में काली मन्दिर में पूजा-अर्चना और मतुआ समुदाय के मन्दिर में जाना अनायास नही हो सकता है। पश्चिम बंगाल में मतुआ समुदाय का 70 से ज्यादा विधानसभाओं में अच्छा-खासा प्रभाव है, जिसे साधने की कोेशिश में भाजपा लम्बे समय से लगी हई है और इसकी पटकथा हिन्दुत्व की छतरी तले लिखने में भाजपा सफल रही तो बंगाल की राह पार्टी के लिए आसान हो सकती है, भाजपा के राष्ट्रीय सचिव और पश्चिम बंगाल के सह प्रभारी अरविन्द मेनन कहते हैैं ‘‘आखिर टीएमसी को इस बात पर क्यों आपत्ति है कि प्रधानमंत्री मन्दिर में पूजा-अर्चना करते है, जय श्रीराम या कृष्णा-कृष्णा से उन्हे परहेज क्यों है वे जब नमाज पढ़ती है तब तो उन्हे कोई आपत्ति नही होती,’’ मेनन की इस बात का मतलब क्या है? वरिष्ठ पत्रकार शंखदीप दास कहते है ‘‘ इसका साफ मतलब है कि भाजपा हर तरीके से धार्मिक ध्रुवीकरण के मुद्दे पर चुनाव चाहती है धु्रवीकरण का मैदान ऐसा है जिस पर भाजपा अभी तक चुनाव में कभी पराजित नही हुई हैं।’’

2019 के लोक सभा चुनाव में भाजपा ने राज्य की 42 में से 18 सीटें जीत ली थी, तब भाजपा को तीखे ध्रुवीकरण की जरूरत नही पड़ी थी, उक्त वक्त भाजपा ने वाम मोर्चे के वोट बैंक में सेंध लगाया और वामपंर्थी पार्टियों का वोट 28 फीसद से घटकर लगभग 6 फीसद रह गया, वाम मोर्चे के वोट में तगड़ी सेंध लगाने के बाद भी भाजपा राज्य में 40 फीसद वोट ही पा सकी जो टीएमसी के वोट शेयर से 3 फीसद कम है, टीएमसी को 43 फीसद वोट हासिल हुआ था, लोकसभा चुनाव के लिहाज से देख जाए तो भाजपा विधानसभाओं की 121 सीटों पर आगे थी, जो राज्य में बहुमत के जादुई आंकडे़ 148 से कम है।

दूसरी बात यह है कि लोकसभा के चुनाव में मोदी का कद ममता बनर्जी पर भारी पड़ता है जबकि विधानसभा चुनाव में ममता के कद के आगे भाजपा का कोई नेता (जो मुख्यमंत्री बन सकता है।) नही ठहरता है ऐसे में भाजपा की बड़ी दिक्कत यह है कि जब वाम मोर्चे के पास सिर्फ 6 फीसद वोट बैंक बचा है, जिसे अपनी ओर खीचने का विकल्प भाजपा के पास नही है भाजपा के लिए यह जरूरी है कि वह ममता के वोट बैंक में सेंध लगाए, इसके लिए पार्टी ने बड़ी तादाद में टीएमसी के नेताओं को तोड़कर अपनी पार्टी में शामिल कर लिया, लेकिन सिर्फ इससे काम नही चलता नही दिख रहा है, भाजपा के एक नेता कहते है, ‘‘ ममता के वोट बैंक में सेंध हिन्दुत्व के नाम पर लग सकता है भाजपा हिन्दुत्व पर गर्व करने की दबी जनभावनाओं को उजागर करने में कामयाब रही है, लोगोे को यह भरोसा है कि वे हिन्दू है तो उन्हें यह कहने सें संकोच अब नही है।’’

राजनैतिक मामलों के जानकार मणिकान्त ठाकुर कहते है, ‘‘भाजपा राज्य में हिन्दुत्व की पटकथा लिखने में सफल हो चुकी उसने गति पकड़ ली तो भाजपा अपने मकसद में सफल हो सकती है प्रधानमंत्री का बंग्लादेश के दौरे पर मन्दिरों में जाना और पूजा करना इसकी गति को बढ़ा सकता है 2017 के उत्तर प्रदेश के चुनाव के दौरान भी प्रधानमंत्री नेपाल के दौरे पर थे और पशुपतिनाथ मन्दिर में पूजा-अर्चना कर ओर भगवा वस्त्र पहन कर भाजपा के मकसद को साध चुके है।’’

बहरहाल, प्रधानमंत्री के बंग्लादेश जाकर मन्दिर में पूजा-अर्चना करने के बाद वहां हिंसक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया है ट्रेनों और मन्दिरों पर हमला हुआ है जिसका असर पश्चिम बंगाल की सियासत पर भी पड़ सकता है ध्रुवीकरण की राजनीति में वोट साधने के लिए भगवान अहम मुद्दा बनता दिख रहा है, अब यह देखना है कि लोग जमीनी मुद्दो को तहजीह देते है या ध्रुवीकरण हावी रहता है।

 

 


Published: 16-04-2021

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