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 भारत की नवीन दंड संहिता : राष्ट्रपति की स्वीकृति

हाल ही में, विधि मंत्री श्री अर्जुन राम मेघवाल ने घोषित किया कि नयी आपराधिक विधियाँ 1 जुलाई 2024 से लागू होंगी।

राष्ट्रपति की स्वीकृति
राष्ट्रपति की स्वीकृति

 नयी आपराधिक विधिओं में भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम शामिल हैं, ये क्रमशः भारतीय दंड संहिता (1860), दंड प्रक्रिया संहिता (1973) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (1872) को प्रतिस्थापित करती हैं। आम जन के लिए नयी आपराधिक विधियों को जानना अतिआवश्यक है कि नयी आपराधिक विधि में क्या मुख्य परिवर्तन हुये हैं। इन नए विधेयकों को भारत के गृह मंत्री श्री अमित शाह द्वारा 11 अगस्त 2023 को लोकसभा में प्रस्तुत किया गया, और 12 दिसंबर 2023 को संसदीय स्थायी समिति के परामर्शों को शामिल कर पुनः प्रस्तुत किया गया। अंततः 25 दिसंबर 2023 को राष्ट्रपति की स्वीकृति के साथ अधिनियमित हुआ। भारत सरकार ने 24 फरवरी 2024 को अधिसूचित किया कि नयी आपराधिक विधियाँ 1 जुलाई 2024 से प्रभावी होंगी।

भारतीय न्याय संहिता (BNS) का उद्देश्य
भारतीय न्याय संहिता (BNS) का उद्देश्य आपराधिक न्याय प्रणाली की दक्षता और प्रभावशीलता को बढ़ाना है। पुरानी विधियों का उद्देश्य सरकार की सुरक्षा करना था किन्तु नवीन विधियों का उद्देश्य जनता के अधिकारों की रक्षा करना और उन अधिकारों से लाभान्वित होने में आने वाली कठिनाईओं को दूर करना है। इसमें विलंब को कम करने, मामलों का अतिरिक्त भार घटाने और भ्रष्टाचार को रोकने के उपाय शामिल हैं। यह पारदर्शिता, जवाबदेही और व्यावसायिकता को सुनिश्चित करके न्याय प्रशासन के मानक और विश्वसनीयता को बढ़ाएगा। भारतीय न्याय संहिता का उद्देश्य आपराधिक कृत्यों के पीछे निहित सामाजिक असमानताओं और अन्याय को दूर करना है, तथा इस प्रकार अपराध के मूल कारणों से निपटना है। भारतीय न्याय संहिता अपराधियों से पीड़ितों की ओर ध्यान केंद्रित करता है, समावेशिता और लैंगिक तटस्थता पर जोर देता है, और कई छोटे अपराधों को शामिल करता है। यह परिवर्तनकारी विधि भारत में विधि के शासन को मजबूत करने और लोकतंत्र को बढ़ावा देने का कार्य करेगी।
भारतीय न्याय संहिता में प्रमुख बदलाव

1. भीड़ द्वारा हत्या (मोब लिंचिंग)
धारा 103(2) में पांच या अधिक व्यक्तियों द्वारा नस्ल, जाति, समुदाय, लिंग, जन्म स्थान, भाषा, व्यक्तिगत विश्वास या किसी अन्य समान आधार पर हत्या करने पर मृत्यु दंड, आजीवन कारावास और अर्थदण्ड का प्रावधान है। यह सर्वोच्च न्यायालय के तहसीन एस पूनावाला बनाम भारत संघ (2018) के निर्देश का पालन करता है।

2. प्रवंचना कर यौन संबंध बनाना
धारा 69 में विवाह, नियोजन व पदोन्नति का मिथ्या वचन देकर या प्रवंचना करके यौन संबंध बनाने पर दस वर्ष तक कारावास और अर्थदण्ड का प्रावधान है।

3. संगठित अपराध
धारा 111 में संगठित अपराध का प्रावधान है, जिसमें व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह परस्पर सम्मति से अपहरण, डकैती, वाहन-चोरी, जबरन-वसूली, भूमि-हड़पना, अनुबंध-हत्या, आर्थिक अपराध, साइबर-अपराध, मानव-तस्करी, ड्रग्स, हथियार या अवैध सामान या सेवाओं की तस्करी, वेश्यावृत्ति या फिरौती के लिए मानव तस्करी शामिल हैं। धारा 112 में तुच्छ संगठित अपराधों के लिए एक से सात वर्ष तक कारावास और अर्थदण्ड का प्रावधान है।

4. आतंकवाद
धारा 113 में भारत की एकता, अखंडता, संप्रभुता, सुरक्षा या आर्थिक सुरक्षा को खतरा पहुंचाने वाले आतंकवादी कार्यों के लिए सजा का प्रावधान है। उपरोक्त परिभाषा गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (1967) की धारा 15, 16, 18, 19, 20, 21 से ली गयी है।

5. मिथ्या समाचार
धारा 197 में भारत की संप्रभुता, एकता, अखंडता या सुरक्षा को खतरा पहुंचाने वाली मिथ्या या भ्रामक जानकारी के लिए तीन वर्ष तक कारावास और अर्थदण्ड का प्रावधान है।

6. देशद्रोह
धारा 152 में राजद्रोह को उपद्रवी गतिविधियों के रूप में पुन: परिभाषित किया गया है, जो अलगाव, विद्रोह या अलगाववादी भावनाओं को भड़काने वाले कार्यों के लिए आजीवन कारावास या सात वर्ष तक कारावास और अर्थदण्ड का प्रावधान है। पहले यह प्रावधान भारतीय दंड संहिता की धारा 124 क में था। भारतीय न्याय संहिता की धारा 152 राजद्रोह शब्द का प्रयोग तो नहीं करती किन्तु राजद्रोह के काफी व्यापक अर्थ को परिभाषा में सम्मिलित करती है।

7. दंड के रूप में सामुदायिक सेवा या समाज सेवा
धारा 4 में विशिष्ट अपराधों के लिए सामुदायिक सेवा को सजा के रूप में शामिल किया गया है। यह दंड का एक नया प्रारूप है जो कि कारावासों में अत्यधिक भीड़ को कम करेगा और अपराधियों के पुनर्वास को बढ़ावा देगा।

8. महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध
नवीन संहिता के अध्याय V में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों को समेकित किया गया है, जो पूर्व संहिता में भिन्न-भिन्न अध्यायों में थे।

9. नाबालिग पत्नी के साथ वैवाहिक बलात्कार
धारा 63 में 18 वर्ष से कम आयु की पत्नी के साथ गैर-सहमति से यौन संबंध को वैवाहिक बलात्कार के रूप में परिभाषित किया गया है।

10. सामूहिक बलात्कार की सज़ा में वृद्धि
धारा 70 में 18 वर्ष से कम उम्र की पीड़िता के गैंगरेप के लिए आजीवन कारावास या मृत्यु दंड का प्रावधान है। अर्थदण्ड पीड़िता के चिकित्सीय और पुनर्वास के व्यय के लिए न्यायोचित और युक्तियुक्त होना चाहिए। साथ ही इसका भुगतान सीधा पीड़िता को ही किया जाएगा। पूर्व संहिता में पीड़िता की आयु 16 वर्ष ही थी। अतः नवीन संहिता प्रावधान को और भी व्यापक बनाती है।

11. न्यायिक कार्यवाही का प्रकाशन
धारा 73 में यौन अपराधों से संबंधित न्यायिक कार्यवाही का बिना अनुमति के प्रकाशन पर दो वर्ष तक कारावास और अर्थदण्ड का प्रावधान किया गया है।

12. अन्य महत्वपूर्ण परिवर्तन
• पहले 511 धाराओं के स्थान पर 358 धाराएँ हैं।
• अर्थदण्डों और कारावास की अवधि में सुधार किया गया है जो वर्तमान परिस्थितियों में आवश्यक था।
• धारा 76 (महिला को निर्वस्त्र करने के आशय से आपराधिक बल का प्रयोग), धारा 77 (दृश्यरतिक्ता) अंशतः लिंग तटस्थ और धारा 96 (यौन शोषण हेतु बालक का उपार्जन) को पूर्णतः लिंग तटस्थ बनाया गया।
• धारा 95 (अपराध कारित करने, लैंगिक शोषण व कामोद्दीपक साहित्य हेतु बालक को नियोजित करना) बच्चों के विरुद्ध एक नया अपराध गठित करती है ।
• माननीय सर्वोच्च न्यायालय के नवतेज सिंह जौहर के निर्णय को प्रभावी करने हेतु भा॰दं॰सं॰ की धारा 377 पूर्ण रूप से उन्मूलित कर दी गई, किन्तु परिणामस्वरूप पुरुषों व उभयलिंगी व्यक्तियों के विरुद्ध बलपूर्वक अप्राकृतिक यौन संबंध और पशुता अब अपराध नहीं हैं।
• 2018 के जोसफ शाइन वाद के निर्णय को प्रभावी करने हेतु व्यभिचार या जारकर्म का अपराध पूर्णतः उन्मूलित कर दिया गया है।
• हिट एंड रन (धारा 106) मामलों के लिए 10 वर्षों का कारावास व अर्थदण्ड का प्रावधान ।
• छीनाझपटी (धारा 304) को एक विशिष्ट अपराध के रूप में शामिल किया गया है।
• धारा 2(9) में लिंग की परिभाषा में उभयलिंगी (ट्रांसजेंडर) भी शामिल।

ये बदलाव भारतीय न्याय संहिता में महत्वपूर्ण सुधार और आपराधिक न्याय प्रणाली में एक नई दिशा का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन परिवर्तनों का उद्देश्य न्याय की गुणवत्ता और पारदर्शिता को बढ़ाना है, जिससे भारतीय समाज में शांति और सद्भाव स्थापित हो सके। हालांकि ये परिवर्तन पूर्ण रूप से समकालीन परिस्थिति के अनुकूल नहीं हैं, जैसे लिंग की परिभाषा में उभयलिंग व्यक्तियों को शामिल करने से तब तक कोई लाभ नहीं जब तक उभयलिंगी व्यक्तियों के विरुद्ध होने वाले अपराधों को भी संहिता में शामिल न किया जाए। संगठित अपराध में साइबर अपराध को भी शामिल किया गया है किन्तु नवीन संहिता साइबर अपराध को परिभाषित नहीं करती। साइबर अपराध या कम्प्युटर जनित अपराध को लेकर भारतीय विधि हमेशा से अनभिज्ञ रही है, जैसा कि इस संहिता में भी प्रतीत होता है। नवीन संहिता में साइबर अपराधों को जगह देकर विधायिका संहिता को और भी व्यापक बना सकती थी। कुछ प्रावधानों में अनावश्यक भाषा परिवर्तन देखे जा सकते हैं जो संहिता को अस्पष्ट बनाते हैं।

देश में नए दंड विधान की आवश्यकता स्वतन्त्रता के साथ ही महसूस की जाने लगी थी। पांचवे विधि आयोग ने भा॰दं॰सं॰ और दं॰प्र॰सं॰ का गहन विश्लेषण कर कई सुझाव दिये किन्तु 1973 में दं॰प्र॰सं॰ को ही बदला गया। अतः बदलाव का यह चरण आवश्यक ही देश की प्रगति में एक सार्थक कदम साबित होगा।

 

- प्रदीप कुमार सिंह

शोधार्थी (विधि)
डॉ॰ शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय लखनऊ


Published: 27-06-2024

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