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व्यंग्य : गंजो को नाखून मिलेंगे

गंजो को नाखून मिलेंगे
गंजो को नाखून मिलेंगे
गंजो को नाखून मिलेंगे/
 
चक्रव्यूह कुर्सी बनी,
महारथी इस पार .
साझेदारी के बिना,
साझे की सरकार .
       गंजो को नाखून मिलेंगे!
 
हवा बांधने में जुटे,
नहीं किसी मे दाग .
कव्वे का है घोसला,
तेवर कोयल राग.
     चुनाव का कोयल दर्शन !
 
नेता सुरसा सम जुटे,
सांसत  में  है  जान .
सूक्ष्म प्रश्न के रूप में,
मत -दाता  हनुमान.
        भद्रे!यही इवी एम लीला !
 
लोकतंत्र के खेल में,
है चुनाव  शतरंज .
फिर वजीरा पैदल हो,
कहे चुनावी  तंत्र .
             चाले अपनी चलते रहिए !
 
 झंडे वायल के बनें,
 खादी है हैरान.
यह चुनाव का खेल है,
बिगड़ी सबकी तान.
         चित भी मेरी,पट भी मेरी!
 
नेता कहे पुकार के,
दे बन्दे को वोट.
वोट मात्र है  मानिए,
पांच साल की चोट.
        वोटर तो इसके आदी हैं !
 
राजनीति के मोड़ पर,
सभी रहे हैं सोंच,
बैठे ठाले आ गई .
कैसे ऐसी मोच.
        फूक ताप से क्या होगा!
 
- अनूप श्रीवास्तव                                      

Published: 10-05-2024

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