स्वामी ने जल संरक्षण के लिये वैश्विक स्तर पर उपयोग की जाने वाली विभिन्न पद्धतियों के विषय में जानकारी दी। साथ ही कृषि व उद्योगों में हो रहे जल के अत्यधिक उपभोग को कम करना तथा आधुनिक तकनीकों का उपयोग कर जल की खपत को कम कर जल प्रबंधन आदि पर विस्तृत चर्चा की।
स्वामी चिदानंद ने कहा कि जल दक्षता में सुधार करना, जल की बर्बादी को कम करना और जल की गुणवत्ता को बढ़ाना अत्यंत आवश्यक है और इसके लिये जल स्रोतों का विस्तार करना होगा। साथ ही राजस्थान जैसे राज्य में जल संसाधन यथा नदी, झील, आर्द्रभूमि, वन एवं मृदा जैसे प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करना और उन्हें पुनसर््थाापित करना अत्यंत आवश्यक है।
इस अवसर पर उपमुख्यमंत्री श्री श्री प्रेमचंद बैरवा ने मटका थिम्बक सिंचाई की एक प्राचीन विधि है के विषय में जानकारी प्रदान की। उन्होंने कहा कि इसमें पौधों को जल देने के लिये सूक्ष्म छिद्रयुक्त मटकों का उपयोग किया जाता है।
इस तकनीक में मटकों में जल भरकर इसे जमीन में गाड़ दिया जाता है, जहाँ केवल इसकी गर्दन मिट्टी के ऊपर उभरी रहती है।
मटके से जल रिसता रहता है और धीरे-धीरे आसपास के पौधों तक फैल जाता है। ये मटके पौधों को कम से कम पाँच दिनों तक नमी और जल प्रदान कर सकते हैं। इन प्राचीन प्रणालियों को पुनः जीवित करना होगा।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि जल हमारा भविष्य ही नहीं बल्कि वर्तमान भी है अतः जल की हर एक बूंद को संरक्षित करना हमारा दायित्व हैं क्योंकि जल की हर बूंद में जीवन है। जिस प्रकार हमें जीने का अधिकार है उसी प्रकार हमारी नदियों को भी स्वछन्द होकर अविरल व निर्मल रूप से प्रवाहित होने का अधिकार है।
साथ ही सभी को पर्याप्त एवं स्वच्छ जल उपलब्ध कराना ईश्वर के वरदान या चमत्कार से कम नहीं है इसलिये हम सभी को इस ओर मिलकर कार्य करने की नितांत आवश्यकता है।
हमारी धरती और हमारे शरीर में भी 70 प्रतिशत जल है और धरती पर व्याप्त उस 70 प्रतिशत जल में से केवल 1 प्रतिशत जल पीने योग्य है इसलिये जल का संरक्षण अत्यंत आवश्यक हैै।
नदियां केवल जल का ही नहीं बल्कि जीवन का भी स्रोत हैं। विश्व की अनेक संस्कृतियों और सभ्यताओं का जन्म नदियों के तटों पर ही हुआ है। नदियां संस्कृति की संरक्षक है और संवाहक भी है। नदियों ने मनुष्य को जन्म तो नहीं दिया परन्तु जीवन तो दिया हैं इसलिये हमें जल के प्रति और भी जागरूक होने की जरूरत है।